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प्रेम जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति है, जिसके जीवन में यह घटित होता है वह बड़ा धन्यभागी है ।प्रेम में डूबा व्यक्ति मानस के किसी और ही तल पर जीता है जिसका अनुभव साधारण अवस्था में हम कभी नहीं कर सकते । चलें इस कविता के बहाने ढूँढ़ें कुछ ऐसा ही .......

प्रेम की छलकन चल रही हूँ मैं आसमां में बादलों पर अंग-अंग में है अजब सी थिरकन प्रेम सागर में  दिल  डूबा  जाता  है हृदयघट में है प्रेम रस की छिलकन तुम आये हो जबसे  लेके मुझे अपने घर में सब रिश्ते भूल गईं बस हूँ अब तेरी दुल्हन खुशियाँ सीने में समा न पाती हैं काबू में नहीं है दिल की धड़कन जब से छुआ है तुमने इन हाथों को अंग अंग में  है गजब की  सिहरन जिस पथ से तुम आये हो  मेरे मन मंदिर में माथे लगाया उस पथरज को बना  कर चंदन चहूँ दिशाओं से बरस रही हैं प्रेम की किरणें घर मेरा बन गया है सौभाग्य का  मधुबन समझ बैठी थी कि  मैं  तो  नाकाबिल  हूँ तूने एहसास कराया कि मुझ में भी है जीवन ।

शहरी माध्यमवर्गीय परिवार अपना एक आशियाना तो बना लेता है परंतु अगर वह एक बागीचा भी बनाने की ज़िद कर बैठे तो उस बगीचे की उम्र कितनी होगी कहना मुश्किल है । इस कविता में ऐसे ही एक बागीचे के मौत की कहानी ..........

एक बागीचे की मौत छोटा सा था मेरा बगीचा मगर बहुत सुन्दर एक - एक फूल पौधों को मैं ने अपने हाथों से लगाया था हरे-भरे दूबों के बीच एक फूल का पौधा था मुझे उस पौधे का नाम नहीं पता, पर उसमें फूल बड़े सुंदर लगते थे जब भी मैं उसमें खाद डालती तो फूलों के रंग और भी चटकीले हो जाते सूर्ख सिंदूर से मैं उन्हें देख बहुत खुश होती जब कभी भी मैं शहर से बाहर जाती वह पौधा मुरझा जाता जैसे रूठा हो मुझसे फिर मैं उसे सहलाती, दुलारती खाद-पानी डालती और वह जल्द ही फिर झूमने लगता खूब सारे फूल निकल आते उसमें जैसे वह नाराजगी  भूल गया हो पौधे तो और भी थे पर वह कुछ ख़ास था उसे मेरे संसर्ग की अधिक जरुरत थी फिर मेरे घर एक मोटर साइकिल आया उसे रखने के लिए मुझे कई पौधे हटाने पड़े लेकिन उस सूर्ख फूलोंवाले पौधे को मैं ने बचा लिया कुछ दिनों बाद मेरे घर कार आया उसे रखने की जगह कम पर गईं मुझसे कहा गया इन पौधों को हटाओ अब यहाँ  गराज बनेगा हरी दूबों की जगह कंकरीट बिछेगा फिर मैं ने उन पौधों में पानी डालना छोड़ दिया क्योंकि अब तो उन्हें उखाड़ना ही था उस सूर्ख फूलों वाले पौधे से मैं ने कुट्टी कर ली हर