यह प्रकृति बड़ी अनूठी है ,कुछ फूलों की खुशबू अद्वित्य होती है और भगवत्ता का आभास करा देती है इस कविता के बहाने कुछ ऐसा ही बांटना है ...........
कामिनी की सुगंध हे कामिनी तुम ने अपनी खुशबू से मेरी बगिया को महका दिया है उस मधुर खुशबू से मेरा तन, मन और अंतरतम सराबोर हो गया है इस खुशबू की बारिश में मैं भिंग गई हूँ इसका नशीलापन मुझे मदहोश बना रहा है मेरी आँखें बंद हो गई हैं और मेरी पलकें भारी एक सुख है जो अवर्णनीय है मैं महसूस कर रही हूँ उस परमात्मा का सामीप्य जो कभी दिखता नहीं लेकिन आज तेरी वजह से दूर नहीं लगता तेरी महक इतनी मीठी है कि मैं इस मिठास से रोमांचित हूँ एक लहर है जिसमें मैं हिंडोले सा झूल रही हूँ एक ज्वार है एक तरंग है जो मुझे अपने साथ बहा ले जा रही है तू बता मैं तेरा कैसे धन्यवाद करुँ तेरा दिया उपहार अनमोल है फिरभी तू उसे बिना मोल के लूटा रही है कैसे करूँ तेरा शुक्रिया इसकी कीमत चुकाने की सामर्थ्य कहाँ करती हूँ तुझे प्रणाम हाथ जोड़ कर और मानती हूँ अपना अहोभाग्य कि मेरी घ्राणशक्ति सलामत है और मैं इस स्वर्गीय सुख को महसूस करने में समर्थ हूँ हे निसर्ग के उपहार तुझे प्रणाम अगर तू है तो परमात्मा कैसे नहीं है ?