बचपन से ही जब भी आसमान की ओर देखती हूँ कुछ भाव मन में उमड़ते घुमरते हैं आज उनको शब्दों में पिरोने की कोशिश की है ............
बादलों की खेती
नीला आसमान और उसमें
बादलों के खेत
लगता है अभी-अभी कोई
देवदूत हल चला कर गया है
बादलों के छोटे -छोटे टुकड़े
बिखरे पड़े हैं चारों ओर
जी करता है उड़ कर जाऊँ और
उसमें अपने सपनों के बीज बो दूँ
मेरे सपने जो कई रंगों कई रूपों के हैं
जब सपनों के फसल लहलहायेंगे
उसमें प्रेम के फल लगेंगे
सुंदर प्यारे-प्यारे आनंद के फूलों से
यह बगिया भर जायेगी
मैं अपनी अंजलि में
उन फूलों को भर भर कर
धरती पर उलीचूँगी
फिर धरती से सारे दुःख बिदा हो जायेंगे
न होगी घृणा, न नफ़रत, न वैमनस्य
इन बादलों से मोती टपकेंगे
पानी की बूंदें बन कर
धरती गीली हो जायेगी
ऐसे मिलन होगा
ज़मीन और आसमान का
और धरती से अंकुर फूटेंगे
जीवन की पहचान बन कर ।
-मुकुल कुमारी अमलास
(चित्र गूगल से साभार)
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