आज जब सारी दुनियाँ महिला दिवस मना रही है तो बड़ी-बड़ी बातें और दावे किये जा रहे हैं ऐसे में यह सोचने का समय है कि क्या वास्तव में स्त्रियों की जिंदगी में कोई बदलाव आया है ? अगर आया है तो कितने प्रतिशत की जिंदगी में ? क्या महिलाओं की आधी आबादी अभी भी कुछ ऐसी जिंदगी नहीं जी रही .......



 औरत 

हर समय उसकी आँखें
डबडबाई ही रहती हैंं 
कौन सा है ऐसा  गम
जिसे दिल ही दिल में सहती है !

सहमे-सहमे लफ़्जों में
एक कहानी वह कहती है
हिचकियों में डूबी हुई
थरथराती स्वर लहरी है ।

सुंदर सी काया उसकी
धीरे - धीरे मरती है
वही जानी पहचानी सी फ़िल्म
फ़्लैश बैक में चलती है ।

औरत होने का जूर्म
उम्रकैद की तरह सहती है
फफोले में भरे पानी सा
टीसती है कसकती है ।
...... मुकुल अमलास 

( चित्र गूगल से साभार) 

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