मानसून की पहली बरखा के साथ सारा परिदृश्य बदल गया, गर्मी से राहत मिली, मन को सुकून | ऐसे मौके पर पेश है एक छोटी सी रचना मौसम की पहली बरखा................
मौसम की पहली बरखा
इस मौसम की पहली बरखा यहाँ हुई अभी-अभी
सोंधी-सोंधी खुशबू आती है मिट्टी से भली-भली।
सबकुछ धुल कर साफ हो गए छत आँगन गली-गली
ठंढी हवा का असर मस्त है लगती तबीयत भरी-भरी।
कितनी बेरंगी और झुलसी थी जिंदगी मरी-मरी
बिजली चमकी मेघ उड़े तो लय में आ गई खड़ी-खड़ी।
माल-मवेशी बूढ़े और बच्चे छोटी सी गुइयाँ ता-ता थई-थई
घर के बाहर निकल पड़े
सब ताजी हवा में खुली-खुली।
वर्षा की बूँदें टप-टप बरसे पास में चाय की प्याली भरी-भरी
साथ दोस्तों की दिलकश बातें गर्म कबाब हो तली-तली।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें