संदेश

अगस्त, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कल मई दिवस है श्रमिकों का दिन । मजदूरों की स्थिति में आज भी कोई बदलाव नहीं आया है । उनकी मेहनत से बनी इमारतों को हम विरासत बना कर संभालते हैं पर उन मजदूरों की फ़िक्र नहीं करते जिन्होंने उसे बनाया । वो आज भी दो जून की रोटी के लिये मोहताज़ हैं और फुटफाथ ही उनका घर है । आज मई दिवस पर मैं उन सभी मजदूरों को सलाम करती हूँ जिन्होंने इस देश को सजाने, सवांरने, आगे बढ़ाने में अपना योगदान दिया है और यह कविता उनको समर्पित करती हूँ .......

मेहनत ही भगवान  कोई काम  छोटा नहीं होता न कोई काम महान मेहनत से तुम न हिचकना समझना न इसे अपमान करो देश की रक्षा या फिर तुम बन जाओ किसान मेहनत की कमाई रंग लायेगी पत्थर से उगेगा धान तुम अल्लाह के बंदे प्यारे तुम ईश्वर की  संतान गर्व से सीना चौड़ी कर बोलो हम मेहनतकश इंसान मेहनत में वो जादू है मित्रों जिसका नहीं  ढ़लान बंजर में भी फूल हैं खिलते रेत बन जाता नखलिस्तान मेहनत करे इंसान अगर तो जीना होता  आसान माँ - पिता के क्लेश हैं मिटते  बनता देश  महान तन से पसीना जब चूता है और बढ़ जाती है थकान रात को मिठी निंद है आती तुम सोते  चादर  तान परिश्रम तुममें बल है भरता तन पर  चढ़ाता  सान तुम पैनी छुरी बन दे जाते आत्मनिर्भरता का ज्ञान जिसने मुफ्त की रोटी तोड़ी और समझा इसमें शान पछता कर उतारना ही होगा दूसरों  का दिया परिधान करो परिश्रम खेतों में उसको बनाओ फूलों का उद्यान बंजर से रोटी पैदा कर बन जाओ मानवता का वरदान करो तरक्क़ी आगे बढ़ तुम फैलाओ उद्योग और विज्ञान कहीं किसी से कम न रहे हम सबसे आगे  हो हिन्दुस्तान घर, आँगन और  गली स्वच्छ हो मोहल्ला और मैदान चलो सब मिल

बसंत के आते ही होली की तैयारी शुरू हो जाती है अब भला जब चारों और प्रकृति पर बहार आई हुई हो और मदनोत्सव का मौका हो तो मन कैसे न बौराये ........

चित्र
बसंत आ गया  फूलों से लिया पराग गालों पे मल गया प्यार भरा एक बोल रंग चंपई कर गया । आमों में लगी बौर वन में महुआ खिल गया मन में जो कूकी कोयल बसंत आ गया । आई जो तेरी याद तन-मन  महक गया जूही सा खिला तन मन वासंती हो गया । कल ही मिली थी उनसे लगा ज़माना हो गया उसकी उल्फ़त मुझको  दीवाना कर गया । खेतों में उगी सरसों पहाड़ों पे टेसू खिल गया नेह की बंधी  डोर दिल बन पतंग उड़ गया । प्यार की है तासीर या कोई जादू कर गया    हम हैं वही लगा जैसे सब कुछ बदल गया ।                                   --- मुकुल  अमलास ( चित्र गूगल से साभार ) 

सच्ची आज़ादी अभी बाकी है

चित्र
मनाओ जश्न कि देश आज़ाद हुआ फहराओ ध्वज कि देश आज़ाद हुआ पर सोचना ज़रा क्या आज़ादी का मतलब सिर्फ़ ब्रितानिया शासन से मुक्ति भर ?????? आज़ादी का अर्थ न इतना सीमित करो ज़रा सोचो थोड़ा गौर करो..... यह तो पक्षी की अनंत परवाज़ यह तो टूटते जंजीरों की झंकार यह तो हर जीव के आत्मा की आवाज नहीं जिसके बिन किसी का निस्तार उन्नति का आगाज़ अभी बाकी है भूख और गरीबी से आज़ादी अभी बाकी है धर्म जाति की कट्टरता से मुक्त होना होगा सबको उसकी हक़ का जायज़ हिस्सा देना होगा अभी से थक गए जो हम तो कौन आवाज़ उठाएगा अभी से जश्न में डूबे अगर तुम तो कौन सवाल उठाएगा कि नहीं आजादी तीन अक्षरों के मेल से बना शब्द भर न तीन रंगों से सजा एक ध्वज भर। ........मुकुल अमलास ...... (चित्र गूगल से साभार)

कुछ लोग सदा धारा की विपरीत दिशा में ही तैरना पसंद करते हैं क्योंकि वे सदैव अपनी अंतरात्मा की सुनते हैं दुनियाँ की नहीं। जब पूरा देश राममय हो रहा मेरे मन में विचारों की कुछ ऐसी श्रृंखला बन रही.......

चित्र
मानव की मूढ़ता हे मानव तू कपट का पुतला धन्य  है  तेरी  धूर्तता हर प्राण में व्याप रहा जो उसको  भी  तू छलता। जिसका आदि अंत नहीं है जो अपरिमित जो असीम है गर्भगृह तक उसे सीमित कर मंदिर  निर्माता कहलाता ? इस ब्रह्मांड को रचने वाला सब के भाग्य को लिखने वाला उस अद्वितीय परम सत्ता को कितना  निरीह  समझता! जो अदृश्य है सदा अगोचर उसकी  प्रतिमा  बनाता राम नाम की माला जप कर अपना  लाभ  उठाता । जो स्रष्टा है अणु-अणु का जो सबका भाग्य विधाता कैसे समाएगा मंदिर में काश  समझ  तू पाता ! ------- मुकुल अमलास ----- (चित्र गूगल से साभार)