बसंत के आते ही होली की तैयारी शुरू हो जाती है अब भला जब चारों और प्रकृति पर बहार आई हुई हो और मदनोत्सव का मौका हो तो मन कैसे न बौराये ........
फूलों से लिया पराग गालों पे मल गया
प्यार भरा एक बोल रंग चंपई कर गया ।
आमों में लगी बौर वन में महुआ खिल गया
मन में जो कूकी कोयल बसंत आ गया ।
आई जो तेरी याद तन-मन महक गया
जूही सा खिला तन मन वासंती हो गया ।
कल ही मिली थी उनसे लगा ज़माना हो गया
उसकी उल्फ़त मुझको दीवाना कर गया ।
खेतों में उगी सरसों पहाड़ों पे टेसू खिल गया
नेह की बंधी डोर दिल बन पतंग उड़ गया ।
प्यार की है तासीर या कोई जादू कर गया
हम हैं वही लगा जैसे सब कुछ बदल गया ।
--- मुकुल अमलास
( चित्र गूगल से साभार )
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