दिल से निकली एक प्रार्थना ऐसी भी जो महाभोग से निर्वेद की ओर ले जाए......

एक प्रार्थना ऐसी भी

हे दाता, जब शरीर दिया है
स्वास्थ्य भी देना,      
ताकि मैं तेरे दिये गये इस अनुपम उपहार का
उचित, भरपूर और सुंदर उपयोग कर सकूँ |
इन आँखों से मैं देख सकूँ
विश्व के सुंदरतम दृश्यों को |
इन कानों तक पहुँचे
इस जग का सबसे मधुरतम स्वर और संगीत |
इन नथुनों में भर सकूँ मैं
मधुर से मधुरतम गंध, 
कोई कस्तुरी या गंधराज का राज, राज न रहे |
इन होठों ने चखा हो दुनिया के
सबसे उत्तम व्यंजनों का स्वाद
और अब कुछ चखने को न बचा हो शेष |
इन हाथों से हुआ हो अपने बुजुर्गों का चरण स्पर्श
और माथे ने पाया हो, 
उनके हाथों से निरंतर बहता आशिर्वाद |
इस शरीर ने महसूस किया हो
अपने प्रिये का मरमरी, कोमल स्पर्श
और इन बांहों ने भरा हो
अपने ही खून का एक अंश |
क्या बचा है इस दुनियाँ में फिर भोगने को ! 
जब इस शरीर का अंत हो कोई भी इच्छा अधूरी न रहे,
जब शरीर होगा तृप्त
फिर आत्मा कैसे रहेगी अतृप्त ! 
इस शरीर रुपी मंदिर की पुजारिन
आपसे मांगती है आज इतना ही
अगर दे सको तो, दे दो यह महाभोग |


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