क्षणभंगुरता जीवन का सत्य है..........


क्षणभंगुरता



वर्षा के बाद खिड़की के ग्रिल में 
पंक्तिबद्ध बूँदों की कतारें 
लुभाता है मुझे 
क्षणभर को उसमें 
सारा आसमान दिख जाता है 
इस लघुता की महत्ता 
विस्मित करती है 
झाँकती हूँ उसमें अपना चेहरा 
पलभर को विहँसती हूँ 
तभी टपक धूल में मिलना उसका 
कर जाता है घायल  
मुदित मन छटपटा उठता है 
सौंदर्य की क्षणभंगुरता 
विचलित करती है मुझे 
पर सत्य से साक्षात्कार 
भी तो  करवाती हैं 
ऐसी ही घटनाएं ।

टिप्पणियाँ

  1. बहुत खूब। मेरु पंक्तिया, इसी सत्य पर।

    चक्र जीवन का
    जिसकी भोर का छोर नहीं
    एक तेरी निद्रा से
    टूटती जीवन लीला की
    डोर नहीं

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