यह विश्राम की वेला है
यह विश्राम की वेला है
दिन ढ़ल चुका
सांझ घिर आई
शरीर थक चुका
अब यह विश्राम की वेला है
बंधनों में जकड़े चित्त को
अब मुक्ति चाहिए
चिर निद्रा में जाने से पहले
कर लूं खुद को थोड़ा निर्भार
दिल पर कोई बोझ न रहे
खोल दूं बंधनों के तार
कर दूं सबको अपनी अपेक्षाओं से मुक्त
बहुत देखा, बहुत पाया
अब समझने का क्षण
कि है सब पुनरोक्ति
अब समय आ गया खुद में उतरने का
विश्राम में जाने से पहले कर लूं खुद को थोड़ा तैयार
पलकों को धुल जाने दूं आंसूओं से
कर लूं थोड़ा वज़ू
एक सुखद, सुंदर स्वप्न के लिए
ताकि उतर सके आंखों में प्रियतम
जिससे होगा अब मिलन
अब मिलन का क्षण आने को है
कर लूं सफ़र की थोड़ी तैयारी
थोड़ा गुनगुना लूं
बिखर जाने दूं मधुर संगीत की स्वर लहरी चारों ओर
डोल लूं थोड़ी देर इस मस्ती में
डूब जाऊं आकंठ
उत्सव के आनंद में
जब वो पूछेगा -
मैं ने तो तुम्हें इतनी बड़ी धरती दी थी
तू नाची क्यों नहीं
तो क्या जवाब दूंगी
कैसे कह सकूंगी -
' पांव तो थे थिरकन नहीं थी
सब तो था फिर भी '
इस ' फिर भी ' से हो लूं पहले मुक्त
अब यह विश्राम की वेला है
जीवन भर जिसने अपने पीछे दौड़ाया
उतर जाऊं उसके अंदर
झांक लूं उन वासनाओं की निस्सारता
गहरी नींद में उतर सकूं
इसके लिए कर लूं खुद को पाप - पुण्य की
जिल्लतों और सत्कारों से मुक्त
मांग लूं क्षमा उनसे
जो समझते रहे मैं ने पाप किया
और कर दूं उन्हें अपने एहसान से मुक्त
जो समझते रहे उनके लिए कुछ भला किया
सभी प्रकार के स्वांग रूपी वस्त्र को उतार
आ जाऊं अपने निश्छल, निर्दोष स्वरूप में
ताकि आ सके बिना व्यवधान के गहरी नींद
अब यह विश्राम की वेला है
(चित्र गूगल से साभार)
(चित्र गूगल से साभार)
गहरी नींद का निश्चिंत सुकून भर अहसास आपने करा दिया । आत्ममंथन सरलता से प्लावित ।
जवाब देंहटाएंआभार्।
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