स्वयं को ढ़ूँढ़ने की प्रक्रिया में कभी हाथ लगते कंकड़-पत्थर तो कभी मोती --------

होनापन सदियों से लोगों ने दुःख का कारण ढ़ूंढ़ा मैं कांटों में खिले फूलों को सुबह की नर्म धूप में चहकते पक्षियों को हवा में डोलते वृक्षों की पत्तियों को शिशु के मासूम चेहरे और निश्छल आंखों को देख आनंद का कारण ढूंढ़ती हूं कुछ भी कारण नहीं मिलता सिवाय इसके कि वे अपने होनेपन में ही तो आनंदित हैं तो मेरा होना मेरे आनंद का कारण क्यों न हो इसमें कितना प्रसाद है भगवत्ता से भरी हुई मैं अपने इस खालीपन से भरी हुई हूं खुद में संपूर्ण इस खालीपन में किसी और के लिए कोई स्थान नहीं। ...........मुकुल अमलास..........