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हमें सभ्य कहलाने का क्या हक़ है?

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हमें सभ्य कहलाने का क्या हक़ है ?????? जब से देखा है रक्तरंजित तुम्हें सड़कों पर मेरे रक्त जम गए हैं पूछती हूं एक ही सवाल खुद से बार-बार हमें विकसित कहलाने का क्या हक़ है? तुम भोली हो, शायद अनपढ़ भी इसीलिए माफ कर दिया होगा अपने गुनाहगारों को पर धिक्कारती है हमारी आत्मा हमें ही कि हमें नागरिक कहलाने का क्या हक है? जब-जब हम अपने प्रजातंत्र की दुदुंभी बजाएंगे तुम याद आओगी सदा पृष्ठभूमि में चित्कार के रूप में पूछते हुए हमें राष्ट्र कहलाने का क्या हक़ है? तुम समाज के मुंह पर एक तमाचा हो जो पूछती है एक ही सवाल राज्याधिशों से तुम्हें संरक्षक कहलाने का क्या हक है? तुम्हारा दर्द, तुम्हारी आंखों का पानी, तुम्हारी छाती का दूध, तुम्हारे पैरों की थकान मेरे सपने में आकर खलबली मचाते हैं पूछते ही रहते हैं जब तक मैं जग नहीं जाती तुम्हें सभ्य कहलाने का क्या हक़ है?