संदेश

जून, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मानसून की पहली बरखा के साथ सारा परिदृश्य बदल गया, गर्मी से राहत मिली, मन को सुकून | ऐसे मौके पर पेश है एक छोटी सी रचना मौसम की पहली बरखा................

चित्र
                                 मौसम की पहली बरखा इस मौसम की पहली बरखा यहाँ  हुई अभी-अभी सोंधी-सोंधी खुशबू आती है  मिट्टी से  भली-भली। सबकुछ धुल कर साफ हो गए छत  आँगन गली-गली ठंढी हवा का असर  मस्त है लगती  तबीयत भरी-भरी। कितनी  बेरंगी और झुलसी थी  जिंदगी मरी-मरी बिजली चमकी   मेघ उड़े तो लय  में आ गई खड़ी-खड़ी। माल-मवेशी  बूढ़े और बच्चे  छोटी  सी गुइयाँ ता-ता थई-थई घर के बाहर निकल पड़े सब ताजी  हवा में खुली-खुली। वर्षा की बूँदें टप-टप बरसे पास में  चाय की प्याली भरी-भरी साथ दोस्तों की दिलकश बातें गर्म  कबाब हो तली-तली।        -----मुकुल अमलास ( चित्र गूगल से साभार)                        

आज अपने पिता को याद करने का दिन है, मुझे भी अपने पिता बहुत याद आए और दिल से निकले ये उदगार.......

चित्र
बाबुजी  मेरे मन के आँगन में स्थापित  एक तुलसी का चौड़ा  अमृत संचित एक भव्य कलश एक ऐसी मूर्ति जिसपर कभी धूल नहीं जमी एक ऐसा व्यक्तित्व जो रहा  सदा मेरा संबल  ज्ञान की पराकाष्ठा  उदात्त व्यक्तित्व  निर्मल चरित्र  इस पूरे ब्रह्मांड में एकमात्र व्यक्ति  जिसपर मैं आँख मूँद कर भरोसा कर सकती अपने पर भी इतना विश्वास नहीं रहा कभी  शायद मैं अपने बारे में गलत निर्णय ले भी सकती  पर वो - कभी मेरे लिए कुछ गलत नहीं होने देंगे  ऐसा अडिग विश्वास रही मेरी थाती  मानती हूँ ख़ुशनसीब खुद को  कितने होते हैं इतने सौभाग्यशाली  जिन्हें पता है कहीं भी बैठा हो  धरती पर है कोई अबलंब उसका कोई रक्षक जो संकट आने पर  उसका बाल नहीं बांका होने देगा निरंतर प्रवाहित आशिर्वाद की सरिता  एक अमल, धवल, अडिग हिमालय  मेरे जीवन की सबसे बड़ी पूँजी  मेरे बाबूजी ।               --मुकुल कुमारी अमलास ( फोटो गूगल से साभार) 

गर्मी की छुट्टी यानि अपनों से मिलने का समय | बच्चे अपने गाँव हो आते हैं दादा-दादी, नाना-नानी से मिल आते हैं, तो आज की कविता उनके लिए..............

चित्र
                                           नानी के घर आया हूँ  काली कोयल कहाँ से आई  क्यों  इतना चिल्लाती हो  कुहु-कुहु का राग सुना कर  क्यों मुझको अभी जगाती हो जेठ की ताप से बेकल होकर  क्या तुम यूँ शोर मचाती हो  या अमराई के पके आम की  खुशबू से बौराई हो गर्मी की छुट्टी है मेरी  मैं नानी घर आया हूँ  प्यारी सी कथा को सुनकर लंबी तान कर सोया हूँ जैसे ही स्कूल खुलेगा  बड़े सबेरे मेरी माँ मुझे जगायेगी  नहा-धुला तैयार करा कर बस में मुझे चढ़ाएगी नानी की कथा है सुंदर  सपनों में भरमाया हूँ  देवलोक की सैर मैं करके  अभी परीलोक में आया हूँl  नाना सुबह की सैर में जाते  नानी मंदिर हो आती है  लड्डू- पेड़े का भोग लगा कर  फिर वो मुझे खिलाती है थोड़ा और ठहर जा कोयल  मैं खुद ही उठ जाऊँगा खा-पी करके मामू संग मैं  अमराई में आऊँगा अमुआ की डाली पर फिर वह  सुंदर झूला एक डालेगा लंबी-लंबी पेंग उड़ेगी कुहु-कुहु मैं भी तेरे संग गाऊँगा ।           ------- मुकुल कुमारी अमलास ( चित्र गूगल से साभार)