गर्मी की छुट्टी यानि अपनों से मिलने का समय | बच्चे अपने गाँव हो आते हैं दादा-दादी, नाना-नानी से मिल आते हैं, तो आज की कविता उनके लिए..............

                                     

     नानी के घर आया हूँ 


काली कोयल कहाँ से आई 
क्यों  इतना चिल्लाती हो 
कुहु-कुहु का राग सुना कर 
क्यों मुझको अभी जगाती हो



जेठ की ताप से बेकल होकर 
क्या तुम यूँ शोर मचाती हो 
या अमराई के पके आम की 
खुशबू से बौराई हो


गर्मी की छुट्टी है मेरी 
मैं नानी घर आया हूँ 
प्यारी सी कथा को सुनकर
लंबी तान कर सोया हूँ


जैसे ही स्कूल खुलेगा 
बड़े सबेरे मेरी माँ मुझे जगायेगी 
नहा-धुला तैयार करा कर
बस में मुझे चढ़ाएगी


नानी की कथा है सुंदर 
सपनों में भरमाया हूँ 
देवलोक की सैर मैं करके 
अभी परीलोक में आया हूँl 


नाना सुबह की सैर में जाते 
नानी मंदिर हो आती है 
लड्डू- पेड़े का भोग लगा कर 
फिर वो मुझे खिलाती है


थोड़ा और ठहर जा कोयल 
मैं खुद ही उठ जाऊँगा
खा-पी करके मामू संग मैं 
अमराई में आऊँगा


अमुआ की डाली पर फिर वह 
सुंदर झूला एक डालेगा
लंबी-लंबी पेंग उड़ेगी
कुहु-कुहु मैं भी तेरे संग गाऊँगा ।
          ------- मुकुल कुमारी अमलास


( चित्र गूगल से साभार)

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मायका होता है बेटियों के लिए स्वर्ग की देहरी पर वह अभिशप्त होती हैं वहाँ ठहरने के लिए सिर्फ सीमित समय तक। शायद इसीलिए उसका आकर्षक है। मेरी यह कविता मायके आई ऐसी ही बेटियों को समर्पित ......

नए साल की आमद कुछ-कुछ ऐसी हो।

सन्नाटा और शान्ति में बड़ा सूक्ष्म अंतर है उसे एक समझने की हमें भूल नहीं करनी चाहिए , अंततः सबका लक्ष्य तो शांति प्राप्त करना ही हो सकता है ........