उऋण




उऋण

अब 
जीवन लगता पूर्ण 
पाती उसमें जिंदा 
खुद को
वही रंग
वही रूप 
वही संवेदना
वही करुणा 
वही रिश्तों की परवाह 
वही जिंदगी की समझ 
वही सुरुचि
वही अभिरुचि 
मैं रहूँ न रहूँ 
धरती पर 
कहाँ है कोई कमी
जीवन का सातत्व  
अब दिखता स्पष्ट
बेटी बड़ी हो गई 
संभाला उसने घर आँगन 
फिर बना एक आशियाना 
घरौंदे में गूँजा जीवन संगीत 
संभाल लेगी सब व्यवधान 
सजा देगी सारे अरमान 
विश्वास थीर हो रहा 
मुक्त हूँ अब 
जीवन मोह से
चुक गया स्त्री होने का कर्ज़ 
बेटी माँ को कर देती  
उऋण 
लोक-परलोक के सारे ऋणों से।  

           ..............मुकुल अमलास 


(चित्र गूगल से साभार) 

टिप्पणियाँ

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (27-09-2021 ) को 'बेटी से आबाद हैं, सबके घर-परिवार' (चर्चा अंक 4200) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरी कविता को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए धन्यवाद्।

      हटाएं
  2. बहुत खूब मुकुल जी, गजब ल‍िखा क‍ि "सजा देगी सारे अरमान
    विश्वास थीर हो रहा
    मुक्त हूँ अब
    जीवन मोह से
    चुक गया स्त्री होने का कर्ज़
    बेटी माँ को कर देती
    उऋण " वाह

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी टिप्पणी मेरे लिए बेहद प्रेरणादायी है, बहुत धन्यवाद आपको।

      हटाएं
  3. बहुत ही सुंदर सृजन।
    अथाह स्नेह उडेलती अभिव्यक्ति।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपके शब्द हमारी प्रेरणा है। धन्यवाद अनीता जी।

      हटाएं
  4. बहुत सुंदर।
    मनकों छू गया आपका सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत-बहुत आभार आपको। हमारे ब्लॉग पे यूँ ही आती रहें।

      हटाएं

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