#हिंदी दिवस के अवसर पर लिखी गई कविता "माँ का श्रृंगार हिंंदी" ...................

 



       माँ का श्रृंगार हिंदी 

 

कैसी अज़ब कहानी इसकी कैसा गजब फ़साना

अपने ही देश में रह गई हिंदी बन कर बेगाना।

 

समझा  जाता सदा उसे  तो अपढ़ों की भाषा

सर पर रख सब हैं नाचते सदा विदेशी भाषा।

 

अंग्रेजी  की  दुम पकड़ सब आगे बढ़ते  जाते

हिंदी बोलने  वाले  सदा अपनी  लाज  बचाते।

 

अपनी भाषा का अवमूल्यन हृदय में घाव करेगा

मेधा के होते  भी जब  कोई आगे नहीं  बढ़ेगा।

 

काश कि जिस में सोचा करते उसमें  ही लिखते-पढ़ते

सहज-सरल अभिव्यक्ति का इसे सशक्त माध्यम पाते।

 

निज भाषा बिन कोई  देश क्या कभी आगे  बढ़ा है

दूसरों  की  संपति से  कोई कहां धनवान  बना है!

 

कमी नहीं कुछ इस भाषा में चाहे हो कोई भी पैमाना

बोली-लिखी जाती एक सी शब्दावली से भरा खजाना।

 

बनी रही  यह आस  अधूरी हिंदी को  सब अपनाते

राष्ट्रभाषा का  देकर दर्जा  भाल पर अपनी सजाते।


कब तक  रहेगा भारत माँ  का यूँ ही श्रृंगार अधूरा

लगा  माथे पर हिंदी की  बिंदी  करें उसे अब पूरा।

 

              .............मुकुल अमलास..........

 

         

 

          (चित्र गूगल से साभार)

टिप्पणियाँ

  1. अति सुन्दर सृजन । हार्दिक शुभकामनाएँ हिन्दी दिवस की ।

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    1. अमृता जी धन्यवाद। हिंदी दिवस की शुभकामनएं आपको भी।

      हटाएं

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