संदेश

जून, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मायका होता है बेटियों के लिए स्वर्ग की देहरी पर वह अभिशप्त होती हैं वहाँ ठहरने के लिए सिर्फ सीमित समय तक। शायद इसीलिए उसका आकर्षक है। मेरी यह कविता मायके आई ऐसी ही बेटियों को समर्पित ......

चित्र
मायका आगे भागती रेल पीछे छूटते खेत खलिहान, नदी, पहाड़, रेत और भी बहुत कुछ छोड़ आई हूँ अपने गाँव की पगडंडियाँ आम का बगीचा लीची भारी डालियाँ खीर और दलपूरी की सुगंध अपनत्व भरी रिश्तों की छाँव अपना जवार अपनी बोली अमराई की मीठी खुशबू गाँव की ठंडी बयार पोखर के घाट बैलगाड़ी, टमटम और हाट कुछ खाली सा हो गया है अंदर अपना एक अंश जैसे छूट गया वहीं लेकिन सामानों के साथ कुछ और भी सिमट आया साथ आँचल में बँधा हुआ खोईंछा अनंत अहिवात का आशिर्वाद लाह की लहठी से भरी कलाई अश्रु जल से सिंचित नेह भरी नज़र यादों का एक अनंत सिलसिला मायके से लौटती बेटी हर बार कुछ और समृद्ध हो। ---- मुकुल कुमारी अमलास (फ़ोटो गूगल से साभार)