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मन का क्या है वह तो कुछ भी कल्पना कर सकता है जैसे शाम को सांवली परी के रुप में देखना , वो जब आती है तो एक जादू सा तिर जाता है चारों ओर और फिर क्या होता है देखते हैं इन पंक्तियों में ...............

शाम की सांवली परी  शाम की सांवली परी आने को है दिन ढ़लने को है रात होने को है अब मद्धम हुई दिन की रोशनी रात की दुल्हन ने ओढ़ी काली ओढ़नी बड़ी नाजुक सी है बड़ी अल्हड़ सी है  अपने में ही खोई बड़ी गुमसुम सी है  होठों में छुपे न जाने कितने राज हैं  सीने में दबी बड़ी तिलस्मी  आग हैं  बड़े अंदाज से डग बढ़ाती है वो  बड़े हौले सबको खुद में समोती है वो  चाँद की बड़ी सी बिंदी माथे पे लगा  तारों की झिलमिल सी आँचल सजा  धीरे धीरे जब गुनगुनाती है वो  कोई मीठी सी धुन जब बजाती है वो  बूढ़े बच्चे सभी को प्यारी सी लोरी सुना  अपने आगोश में सबको सुलाती है वो  चारों ओर जब छा जाती निस्तब्धता  बड़े हौले हौले अपने कदम को उठा  दिन निकलने से पहले मुँह को छुपा  दिन भर के लिये रात की दुल्हनियां  न जाने फिर  कहाँ चली जाती है  वो । 

आज मदर्स डे के मौके पर जब सभी अपनी अपनी माँ को याद कर रहे हैं मुझे भी अपनी माँ की याद आई और अनायास ये पंक्तियाँ दिल से निकलीं ........आज दिल में हूक उठती है  सभी पलकें भिंगोते हैं , मगर जबतक माँ रही जिंदा हम उसको कितना सताते हैं ।

न जाने कहां वो चले गये   खेत, खलिहान, नदी, पहाड़ सब ज्यों के त्यों हैं यूँ ही खड़े  सिर्फ जिंदगी में ही क्यों भला इतने तूफां आ के चले गये । अब ढूंढती हैं नजरें उन्हें जिनकी आँखों के हम नूर थे दर बदर खोजा उन्हें पर उनके साये भी हमसे दूर थे । खैरो ख़बर मिलती नहीं किस जहां में जाके वो सो गये है कौन सी वो गली कि जहाँ जाके वहीं के वो हो गये । बड़े नाजों से पाला हमें तामील,तमीज और तहजीब दी कभी भूल हमसे जो हुई कभी माफ करने में न देर की । कभी अपनी ख़बर भेज़ी नहीं न कोई ख़त, पैगाम दिये जो हमारे फिक्र में जीते थे आज इतने सख़्त कैसे हो गये ।  रो रो के हमने सदायें दी, उन्हें  बार बार पुकारा  किये  वो लौट कर न आये फिर न जाने किस जहां में खो गये | 

जिंदगी के खेल बड़े निराले हैं , न जाने कितने रंग दिखलाते हैं हमें और हम उसमें उलझे रह जाते हैं । जिंदगी की फ़ितरत को समझने की कोशिश इन गजलों के बहाने ।

ग़ ज़ल माना है हमने तुमको अपना दिल  से दिलोजां से एतवार करके तो देखो  हर इंसा झूठा नहीं होता । जाना तो होगा ही सबको  एक दिन इस दुनियां से फिरभी न जाने क्यों इसबात का भरोसा नहीं होता । न मेरी भावना समझी न मेरा रंजों गम जाना सिर्फ साथ रहने से कोई ग़मख़्वार नहीं होता । काश जिंदगी जी लेते हम भी  थोड़ी शिद्दत से ग़म है कि वक़्त को पलटना आसां नहीं होता । लाख दोस्त सही एक अकेला मेरा अपना होता जुगनुओं के मेले से क्या कभी दूर अँधेरा होता ।