जिंदगी के खेल बड़े निराले हैं , न जाने कितने रंग दिखलाते हैं हमें और हम उसमें उलझे रह जाते हैं । जिंदगी की फ़ितरत को समझने की कोशिश इन गजलों के बहाने ।
ग़ज़ल
माना है हमने तुमको अपना दिल से दिलोजां से
एतवार करके तो देखो हर इंसा झूठा नहीं होता ।
एतवार करके तो देखो हर इंसा झूठा नहीं होता ।
जाना तो होगा ही सबको एक दिन इस दुनियां से
फिरभी न जाने क्यों इसबात का भरोसा नहीं होता ।
फिरभी न जाने क्यों इसबात का भरोसा नहीं होता ।
न मेरी भावना समझी न मेरा रंजों गम जाना
सिर्फ साथ रहने से कोई ग़मख़्वार नहीं होता ।
सिर्फ साथ रहने से कोई ग़मख़्वार नहीं होता ।
काश जिंदगी जी लेते हम भी थोड़ी शिद्दत से
ग़म है कि वक़्त को पलटना आसां नहीं होता ।
ग़म है कि वक़्त को पलटना आसां नहीं होता ।
लाख दोस्त सही एक अकेला मेरा अपना होता
जुगनुओं के मेले से क्या कभी दूर अँधेरा होता ।
जुगनुओं के मेले से क्या कभी दूर अँधेरा होता ।
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