संदेश

अगस्त, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आज रक्षाबंधन के दिन बचपन की बड़ी याद आई, सावन मायके की याद दिला ही देता है, उन्हीं दिनों को समर्पित करती हूँ यह कविता ..........

चित्र
अब तो सावन सूख गया है  बाबूल की गलियाँ थी बचपन की सखियाँ थी  मेंहदी लगी हाथों में हरी चुड़ियाँ कैसी सजती थी  पल-पल हम जीते थे अपने संग होते थे  खुशियों के सागर में लगाते हम गोते थे  बाबा का प्यार था अम्मा की गलबहियाँ थी  छोटा सा घर था लेकिन महलों सी खुशियाँ थी  चुन-चुन कर बागों से फूलें जो आतीं थीं  रोली और चंदन से थाली जो सजती थी  त्योहारों का मौसम था रिश्तों की बेला थी  भैया की कलाई पर राखी जब सजती थी  जीवन में कितना रंग था जीवन एक बगिया थी  रंगीन कलियों पर बैठी इंद्रधनुषी तितलियाँ थी  सखियों के संग पेड़ों पर झूले जब झूलते  थे कजरी की तानों पर तन-मन  कैसे डोलते थे  अब तो सावन सूख गया है अपना घर जब से दूर हुआ है  मेघा जब घिर कर आती है  जियरा में अगन लगाती है  बीते दिन याद दिलाती है मेरी अखियाँ भर-भर आती है  झर-झर जब आँसू बहते हैं मनुआ बोझिल कर जाती है |                                                                          ..... मुकुल कुमारी अमलास .....

सच्चे प्यार की पहचान आसान नहीं, अक्सर वह भ्रम ही होता है ।प्रेम बड़ी पवित्र चीज है उसमें कोई मांग नहीं होती । उसकी पवित्रता तबतक बनी रहती है जबतक हाथ से छू कर उसे गंदा न किया जाय और यह हाथ किसी का भी हो सकता है ........

चित्र
प्यार का भ्रम  प्यार का भ्रम सबसे बड़ा भ्रम होता है  जो हमें गुमराह कर देता है  हम हो जाते हैं उसके अधिन  वह हमारा वर्तमान ही नहीं लेता  भविष्य भी छीन लेता है  कुछ लोग अपनों के भेष में छिपे भेड़िये होते हैं  उसके बड़े नाख़ून दिखाई नहीं देते  न लोलुप निगाहें  जो हमारे मांस को नोचने वाले हैं  उसकी मीठी बोली हमें बरगलाती है   उसके अपनेपन का स्वांग  हम पर जादू कर देता है  और हम हो जाते हैं उसके अधिन  फिर वो बड़े चाव से हमारे   मांस और मज्जे को चूस चूस कर खाता है  और हम रह जाते हैं   एक नर कंकाल मात्र  फिर जिंदगी हो जाती है  रेगिस्तान सी शुष्क, नीरस, निष्प्राण   फिर क़ोई अमृत घट पिलाने वाला  सबकी जिंदगी में नहीं आता प्रेम जब भी वासना का रुप धरती है  प्रेम वाष्प बन कर उड़ जाता है  रह जाती है कोरी लिप्सा  और हम भ्रम में रहते हैं कि  हम प्रेम में हैं ।                                                                                     --   मुकुल कुमारी अमलास                                                                    

उम्र बढ़ने के साथ साथ प्यार का स्वरुप बदल जाता है, वह अदृश्य अवश्य रहता परन्तु लुप्त नहीं ........

चित्र
प्यार जिंदा है  चेहरे का लावण्य अब कम हो गया है मासपेशियां शिथिल शरीर का जादू अब नहीं चलता नहीं करता अब शरीर अंतरंगता की मांग हम रहते एक दूसरे से दूर दूर झल्लाते एक दूसरे पर अपनी सहूलियतों को तवज्जो देते लगता है हमारा प्यार कम हो गया है याद आते हैं वो दिन और रातें जब साँसें महकती थी आँखें प्यार के नशे से रहती थी भारी घंटों एक दूसरे में गुम पूरी दुनियां को भूल जाते थे हम समय की धूल में अब धुंधले हो गये वे क्षण अब साथ हो कर भी हम हैं कितने दूर क्या उम्र के इस पड़ाव पर प्यार नाम की कोई चीज नहीं रह जाती बैठी बैठी सोचती हूँ ठुड्डी पे हाथ टिकाये तभी चाय की प्याली ले आते हो तुम साथ साथ चाय की चुस्की लेते होता है पूर्णता का एहसास क्या तुमने दवा ली कहना तेरा कराता है मुझे एहसास अपने प्यार के जिन्दा होने का और मैं उठ जाती हूँ पानी गरम करने तुम्हारे नहाने के लिये प्यार मरता नहीं बस रूप  बदलता है पहले बर्फ सा ठोस था निश्चित आकृति में झलकता स्पष्ट अब पानी सा तरल बन गया है पारदर्शी, झीना झीना एक कोमल सा एहसास भर ।

बचपन से आजतक कल्पना में चाँद को कई कई रुपों में देखा है, जब भी मैं उदास होती हूँ लगता है वह आसमां से उतर मेरे पास आ बैठा है, ऐसी ही मनःस्थिती में लिखी गई कविता ...........

चित्र
कभी जो चाँद मेरे सिरहाने आये  कभी जो चाँद आसमां से उतर मेरे सिरहाने आये अपनी चाँदनी की शीतल चादर मुझको ओढ़ाए धीरे धीरे लोरी गाये गहरी नींद मुझको सुलाये जीवन में भोगा न देखा कभी सपनों में ऐसा कुछ मुझको दिखाये बेचैन दहकता मन सावन की ठंढी फुहारों में जी भर नहाये कुछ पल बैठे मेरे संग बन कर मीत मेरा मुझ को दुलराये भूलूँ मैं इस जग की  सारी व्यथा और क्लेश उसके संग उड़ कर इस दुनियां से बाहर फलक तक हो आएं  कभी जो यह चाँद आसमां से उतर मेरे सिरहाने आये ।            .......मुकुल अमलास   (चित्र गूगल से साभार) 

प्रिय बिन ये निःसार है जीवन । अपने प्रिये से बिछुड़ना अपूरणीय क्षति होती है जो जीवन को अर्थहीन बना देती है । किसी अपने को इस दुःख में देख स्वतः ये पंक्तियां उतर आयीं ...............

चित्र
प्रिय बिन ये निःसार है जीवन प्रिय बिन ये निःसार है जीवन जल बिन सूखी धार है जीवन रंगहीन  मधुमास है जीवन दुःख,दर्द, संताप है जीवन तरु से विलग पात है जीवन आँसू, रुदन, क्लेश है जीवन कल्प सा लंबा भार है जीवन मरुस्थल का ताप है जीवन बिन बूंदों का बादल जीवन बिन प्राण का तन है जीवन रंग विहीन, बेस्वाद है जीवन तमस है, काली रात है जीवन बिन पतवार की नाव है जीवन दैव का दिया अभिशाप है जीवन विरह की व्यथा, विलाप है जीवन तुम बिन नहीं सत्य यह जीवन सत्य का ढोंग, असत्य है जीवन ।