बचपन से आजतक कल्पना में चाँद को कई कई रुपों में देखा है, जब भी मैं उदास होती हूँ लगता है वह आसमां से उतर मेरे पास आ बैठा है, ऐसी ही मनःस्थिती में लिखी गई कविता ...........




कभी जो चाँद मेरे सिरहाने आये 



कभी जो चाँद आसमां से उतर
मेरे सिरहाने आये
अपनी चाँदनी की शीतल
चादर मुझको ओढ़ाए
धीरे धीरे लोरी गाये
गहरी नींद मुझको सुलाये
जीवन में भोगा न देखा कभी
सपनों में ऐसा कुछ मुझको दिखाये
बेचैन दहकता मन
सावन की ठंढी फुहारों
में जी भर नहाये
कुछ पल बैठे मेरे संग
बन कर मीत मेरा
मुझ को दुलराये
भूलूँ मैं इस जग की 
सारी व्यथा और क्लेश
उसके संग उड़ कर
इस दुनियां से बाहर
फलक तक हो आएं 
कभी जो यह चाँद आसमां से उतर
मेरे सिरहाने आये ।
           .......मुकुल अमलास  

(चित्र गूगल से साभार) 

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