उम्र बढ़ने के साथ साथ प्यार का स्वरुप बदल जाता है, वह अदृश्य अवश्य रहता परन्तु लुप्त नहीं ........



प्यार जिंदा है 



चेहरे का लावण्य अब कम हो गया है
मासपेशियां शिथिल
शरीर का जादू अब नहीं चलता
नहीं करता अब शरीर अंतरंगता की मांग
हम रहते एक दूसरे से दूर दूर
झल्लाते एक दूसरे पर
अपनी सहूलियतों को तवज्जो देते
लगता है हमारा प्यार कम हो गया है
याद आते हैं वो दिन और रातें
जब साँसें महकती थी
आँखें प्यार के नशे से रहती थी भारी
घंटों एक दूसरे में गुम
पूरी दुनियां को भूल जाते थे हम
समय की धूल में अब धुंधले हो गये वे क्षण
अब साथ हो कर भी हम हैं कितने दूर
क्या उम्र के इस पड़ाव पर
प्यार नाम की कोई चीज नहीं रह जाती
बैठी बैठी सोचती हूँ
ठुड्डी पे हाथ टिकाये
तभी चाय की प्याली ले आते हो तुम
साथ साथ चाय की चुस्की लेते
होता है पूर्णता का एहसास
क्या तुमने दवा ली कहना तेरा
कराता है मुझे एहसास
अपने प्यार के जिन्दा होने का
और मैं उठ जाती हूँ
पानी गरम करने तुम्हारे नहाने के लिये
प्यार मरता नहीं बस रूप  बदलता है
पहले बर्फ सा ठोस था
निश्चित आकृति में झलकता स्पष्ट
अब पानी सा तरल बन गया है
पारदर्शी, झीना झीना
एक कोमल सा एहसास भर ।


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