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गाँव का सीधा सच्चा जीवन कितना लुभावना ! एक दृश्य प्रस्तुत है ...

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ठिठकी सी चाल  झुकी-झुकी सी नज़र  नई-नई दुल्हन  शर्माए रह-रह कर सांवली सूरत  निकली सज-संवर चहरे पे लाज  करधनी बंधी कमर गाँव की गोरी  टेड़ी-मेढ़ी डगर चली सखी संग  झुनझुन बाजे झांझर पनघट की चौपाल  कानाफूसी का संसार  बिन बात हंसी  छलकती गागर नटखट साजन  मारे तीर नजर  सिहरे तन-मन उड़ा जाए आंंचर रैन बड़ी भारी थी मुख पे फैली काजर  गालों के दाग देख  पड़े बोलों के खंजर  नेह का वादा  सैंया का लाड़ लाया नाथुनियाँ  पहनाई हार  भूल गई बाबूल की गली  भूली अम्मां का प्यार  प्रीतम की नगरी में बसा नेह का संसार  |