मायका होता है बेटियों के लिए स्वर्ग की देहरी पर वह अभिशप्त होती हैं वहाँ ठहरने के लिए सिर्फ सीमित समय तक। शायद इसीलिए उसका आकर्षक है। मेरी यह कविता मायके आई ऐसी ही बेटियों को समर्पित ......


मायका
आगे भागती रेल
पीछे छूटते खेत
खलिहान, नदी, पहाड़, रेत
और भी बहुत कुछ छोड़ आई हूँ
अपने गाँव की पगडंडियाँ
आम का बगीचा
लीची भारी डालियाँ
खीर और दलपूरी की सुगंध
अपनत्व भरी रिश्तों की छाँव
अपना जवार अपनी बोली
अमराई की मीठी खुशबू
गाँव की ठंडी बयार
पोखर के घाट
बैलगाड़ी, टमटम और हाट
कुछ खाली सा हो गया है अंदर
अपना एक अंश जैसे छूट गया वहीं
लेकिन सामानों के साथ
कुछ और भी सिमट आया साथ
आँचल में बँधा हुआ खोईंछा
अनंत अहिवात का आशिर्वाद
लाह की लहठी से भरी कलाई
अश्रु जल से सिंचित नेह भरी नज़र
यादों का एक अनंत सिलसिला
मायके से लौटती बेटी
हर बार कुछ और समृद्ध हो।
---- मुकुल कुमारी अमलास
(फ़ोटो गूगल से साभार)

टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शनिवार 18 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत भावपूर्ण रचना है आपकी मुकुल जी |

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