प्रेम भी अजीब शय है , सच कहा है प्रेमी दीवाने होते हैं । उनकी बातें आम आदमी के पल्ले न पड़े । उनकी कल्पनायें स्वर्गीय होतीं हैं । चलिये आज उन्हीं के नाम यह कविता ...............


दरिया किनारे चलो 


मद्धिम सी रोशनी चाँद तारों की है 
मेरे संग संग  दरिया किनारे चलो 
भिंगी भिंगी हवा में एक रवानी सी है 
कोई मीठी सी बात तुम हमसे कहो 
हौले हौले मेरी झूल्फ उड़ती रहे
धीरे धीरे तुम मेरी बहियाँ गहो 
एक नौका में बैठ हम तिरते रहें 
सिर्फ नदिया की धारा हमारे संग हो 
आज बादलों के संग दौड़ की होड़ हो 
आज की रात चलो कुछ ऐसा करो 
दे गवाही ये दरिया हमारे प्यार की 
 न मैं कुछ कहूँ न तुम कुछ कहो ।




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