जिंदगी को समझना कितना मुश्किल है ! क्या आज तक कोई इसे समझ पाया ? हमने तो जब भी इसे समझने की कोशिश की और उलझ कर रह गए ।इसी उलझन की अभिव्यक्ति हैं ये पंक्तियाँ ............
जिंदगी एक अजीब शय
अजीब शय है ये जिंदगी
न आगाज बस में न अंत ही
कहूँ इसे गजल या कि गायकी
कभी दर्द है कभी बेइंतिहा खुशी
कभी गाने को इसे दिल करे
कभी निकले मुँह से न शब्द भी
कभी प्यार भरा एक तोहफा
कभी दुःख भरी कोई शाप सी
नहीं आँसूओं का कोई मेरे हिसाब
न मुस्कुराहटों का कोई पारावार ही
अब जिंदगी देने वाले तू ही बता
है ये पिछले जन्म की कोई खता
या फिर समझूँ इसे तेरी कृपा
ये जिंदगी है आखिर क्या बला ?
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