आज महिला दिवस के अवसर पर समस्त नारी जाति को समर्पित है मेरी यह कविता ........

नारी 


नदिया के दो पाट सरीखा 
हे नारी  तेरा जीवन है 
इस पार तेरे बाबुल का घर 
उस पार खड़ा तेरा प्रियतम है


तेरे बिन सूना पिया का आँगन 
तुम बिन खाली पीहर है 
दो-दो कुल का बोझ तू ढ़ोती 
तू इस धरती की हिम्मत है


प्रेम, दया, करुणा और ममता
तुम से ही भाव ये जिन्दा है 
जो तू न  हो इस धरती पर  
कितना कटु औ नीरस जीवन है


माँ बन कर तू जीवन देती 
तुझसे ही सृष्टि चलती है 
तेरी कृपा का मोल नहीं है 
तू ही प्रकृति की नियति है


सुंदर है तू फूल की भाँति 
मख़मल सी तू कोमल है 
जेठ की तपती धूप ये दुनियां
तू नीम की छाया शीतल है


घर को तू ही स्वर्ग बनाती 
तुझसे ही जीवन का सुख है 
तेरे ऋण को चुका सके कोई 
किसमें इतनी  शक्ति  है


तेरे हृदय में प्रेम की सरिता 
धैर्य तेरा फौलादी है 
शक्तिरूपिणी, आशीर्वचनी 
तू सीता तू ही भवानी है ।


बड़े मूढ़ हैं ये दुनियांवाले
जो तेरी कीमत कम आंकते हैं 
प्रकृति की अदभूत रचना का 
सही अर्थ नहीं पहचानते हैं


उस घर में सौभाग्य बरसता 
जिस घर में तेरी  इज्ज़त है 
है धरती रहने के क़ाबिल
ग़र इस जग में तेरी ही जय है ।


       -- मुकुल कुमारी अमलास  


( चित्र गूगल से साभार ) 

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