किसी अपने को खोना अपूरणीय क्षति है, दुःखद है, पर दुनियां में अगर कोई सत्य है तो वह है मृत्यु जिसे झुठलाया नहीं जा सकता और मानव उसके सामने लाचार है,ऐसी ही लाचार मनःस्थिति में निकले हैं ये शब्द----

श्रद्धांजलि
दशों दिशाएं चुप्प हैं
घुप्प काले बादल घिरे आ रहे
मृत्यु शोक का सन्नाटा फैला है चारों ओर
कोई शरीर का चोगा छोड़ गया
मैं भागी आ रही
उस प्रिय आत्मन को देखने
पर मरने के बाद
मिट्टी को मिट्टी में मिलाने की
क्यों रहती इतनी जल्दी
आख़िर इस शरीर की
मृत्यु से बढ़ कर
अंतिम गति और क्या होगी
समझाना चाहती हूँ खुद को
मृत्यु छीन लेती है हमसे
अपने सगे को सदा के लिये
एक अंतिम बार उसे देख लेने से
यह दुःख कम तो नहीं हो जाता
फिरभी अंतिम दर्शन नहीं कर पाई
इस बात से
कलेजा मुँह को क्यों आ रहा मेरा
आँखों के सामने धुंध सा छाया है
और आँखों से बह रही जलधारा
सावन की हरियाली
वीरानी में बदल गई है
एक और भी है जो है चुप
पर उसकी सूनी कलाई देख
मुझमें क्यों रुदन का बेग फूट रहा
सबलोग तो सामान्य हो चुके
उसे विदा कर
बल्कि कुछ के लिए तो
यह मौका है उत्सव का
अब सब आयेंगे
पंडित और लोगों की भीड़ में
होंगी कर्मकांड की नौटंकियाँ
मेरा ही मन क्यों भागता है इस सब से
जिंदा रहते जो दे न सके दो मीठे बोल
इस सबसे क्या दे सकेंगे मृत आत्मा को सदगति
होता है दर्द देख कर बिडंबना
जिन लोगों ने जीवन भर निभाई दुश्मनी
अब हैं सबसे आगे समाजिकता निभाने में
लोग आभार मानते हैं
यह है उनका बड़प्पन
पर मुझे ही क्यों लगता है
वे हैं बस एक अच्छे अभिनेता
मैं ही हूँ कुछ अनुपयुक्त इस समाज में
भाग जाना चाहती हूँ इस भीड़ से
कहीं एकांत में बैठ
स्मृति में उतारना चाहती हूँ उसका चेहरा
याद करना चाहती हूँ 
उसके साथ गुजरे
बचपन से आजतक के पलों को
उसकी तस्वीर पर ढेरों जूही के फूल चढ़ा
सभी दिशाओं को धूप से सुगंधित कर देना चाहती हूँ
देना चाहती हूँ उसे अपनी
आँसूओं का तर्पण
मुझे पता है वह विराट में मिल चुका है
अब वह विराट का हिस्सा है
शरीर की सीमा छोड़
वह हर दिशा में फैल चुका है
और अब हर क्षण हर पल है हमारे साथ
जब भी मैं उसे याद करुँगी
वह मेरे आसपास होगा
विराट की दिव्यता के साथ
औरों को वह भले न दिखे
मुझे दिख रहा है
बहती हवाओं में
उड़ती घटाओं में
इस सावन की हरियाली में
मुझे यह भी दिख रहा है कि
मैं भले उस भीड़ का हिस्सा न होऊँ
फिरभी उसने
मेरी श्रद्धांजलि स्वीकार कर ली है
और दे दी है इजाज़त
लौटने की ।

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