आज महिला दिवस पर महिलाओं को समर्पित है मेरी यह कविता .........

नारी की चाह

मैं सुंदर हूँ मैं कोमल हूँ
मैं फूल हूँ मैं ही कली हूँ
झूठी प्रशंसा मेरी मत करना
मैं धरती हूँ और चाहती
पग धरती पे ही धरुं
बस सम्मान की चाह करूं

स्त्री सदा सुंदर नहीं होती
क्यों पैमाने पे खड़ी उतरुं
काला कलूटा रूप हो मेरा
या बेडौल स्वरूप धरुं
ईश्वर की मैं अनुपम रचना
हृदय में भाव भरुं
बस सम्मान की चाह करूं

मुझको तुम देवी न बनाना
न मैं श्रद्धा की चाह करूं
दया का पात्र कभी बनूं ना
बस इतनी सोच धरूं
इंसा हूँ इंसान रहूँ मैं
उससे कम न स्वीकार करूं
बस सम्मान की चाह करूं

मुझको अपनी पहचान ढूँढ़नी
मेहनत से आगे बढूं
अपना निर्णय आप ही लूँ मैं
दृढ़ संकल्प करुं
कमजोर भले ही पंख हों मेरे
हौसले से नभ में उरूं
बस सम्मान की चाह करुं 

....मुकुल कुमारी अमलास

( चित्र गूगल से साभार )

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