कॉरोना के दिनों में
बाहर का सन्नाटा
और अंदर का एकांत
पैदा कर रहा
आतंकित कर देने वाला
विषाद और अंदेशा
भय और दहशत की भी होती एक आवाज़
शोर जैसा
सांय........सांय..........सांय..........
दूर से पास आता हुआ
जैसे कोई तूफान
समेटे अपने अंदर विध्वंसक बवंडर
धीरे-धीरे यह शोर
हो जाता पूरे अस्तित्व पर हावी
तन-मन कांप उठता
छा जाता विषाद का घुप्प अंधेरा
तभी कहीं से
पानी की एक बूंद सी तरलता
टपकती हृदय-ताल में
टप ..........टप ..........टप ..........
जलतरंग सा कुछ खनकता
आस की भी होती एक ध्वनि
हृदय तंतुओं को छेड़
जो जगा देती रोम-रोम में
पुलक से भरा एक भरोसा
प्रकृति शाश्वत है
प्रेम शाश्वत है
जीवन भी शाश्वत है
फैलने लगता फिर चारों ओर
एक मद्धम संगीत
रात की बेला का कर के पटाक्षेप
जैसे हो रहा हो भोर
चहकने लगी हो चिड़िया
चटकने लगी हो कलियां
बहने लगी हो शीतल हवा
हौले .........हौले......... हौले........।
.......मुकुल अमलास
(कॉरोना के दिनों में पार्ट-2)
(फोटो गूगल से साभार)
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