अगर मैं कहूँ की पेड़‌-पौधे मुझसे संवाद करते हैं और उनसे मेरी दोस्ती है तो शायद आप हँसें, पर मेरी इस कविता को पढ़ने के बाद शायद आपको मेरी बातों पर भरोसा हो जाये ......


nayi_umang 
मुझसे संवाद करो

ओ निसर्ग के उपहारों मुझसे संवाद करो
यह माना हम तुम अलग बहुत
मैं मानव तुम वनस्पति जगत
पर यह रिस्ता बड़ा अनोखा 
मैं सखी तुम्हारे बचपन की
तुम मेरे मानस के परम सखा
ओ जूही की कलियों मुझसे संवाद करो|

लगता क्यों मुझको ऐसा है 
हम तुम में सब संप्रेषणीय है
न स्वर कंठ की आवश्यकता
न अक्षर भाषा की बाधकता
ओ मधुमालती की लताओं मुझसे संवाद करो|

कोई सूक्ष्म तरंग सी आती है
जो मुझे विह्वल कर जाती है
तेरी खुशबू में एक वक्तव्य छिपा
अतींद्रिय तिलिस्म का जाल बिछा
ओ हरसिंगार के फूलों मुझसे संवाद करो|

तेरी खामोशी कुछ  कहती  रहती  
जहाँ मेरी इन्द्रिय नहीं पहुँच सकती
बहुत बारीक हैं कुछ परदे  पड़े 
जिनके आर पार हमदोनों  खड़े
ओ चंपा की डालियों मुझसे संवाद करो|

हवा में तेरे पत्ते जब डोलते हैं
लगता कुछ भेद सा खोलते  हैं
कभी अस्पष्ट, धुंधला सा  पाया
कभी लगता सबकुछ समझ लिया
ओ रातरानी की झाड़ियों मुझसे संवाद करो|

डालों पर जब कलियाँ लगती  
हो शुभ्र, ताम्र या हो लोहित
प्रकृति की सारी सुंदरता समेट
करता मन कितना हर्षित, पुलकित
ओ गुलाब की पंखुड़ियों मुझसे संवाद करो|  

मैं करुँ जो कभी तेरा आलिंगन
इस स्पर्श में कितना अपनापन
तू मेरे भावों को समझ  पाये  
मैं सोचूँ कि तुम हो मेरे जाये
ओ मौलसिरी की तरुओं मुझसे संवाद करो|

मानव अपनी वाक् क्षमता पर इठलाये  
कितना कहे  सुने और विवाद  उठाये  
तू  निर्वाक खड़ा एक हठयोगी सा
बिन कहे ही सब कुछ कह  जाये
ओ पीपल के वृक्षों मुझसे संवाद करो|
ओ निसर्ग के उपहारों मुझसे संवाद करो

-----मुकुल अमलास---


(फोटो गूगल से साभार)   

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