कल मई दिवस है श्रमिकों का दिन । मजदूरों की स्थिति में आज भी कोई बदलाव नहीं आया है । उनकी मेहनत से बनी इमारतों को हम विरासत बना कर संभालते हैं पर उन मजदूरों की फ़िक्र नहीं करते जिन्होंने उसे बनाया । वो आज भी दो जून की रोटी के लिये मोहताज़ हैं और फुटफाथ ही उनका घर है । आज मई दिवस पर मैं उन सभी मजदूरों को सलाम करती हूँ जिन्होंने इस देश को सजाने, सवांरने, आगे बढ़ाने में अपना योगदान दिया है और यह कविता उनको समर्पित करती हूँ .......

मेहनत ही भगवान 

कोई काम  छोटा नहीं होता न कोई काम महान
मेहनत से तुम न हिचकना समझना न इसे अपमान
करो देश की रक्षा या फिर तुम बन जाओ किसान
मेहनत की कमाई रंग लायेगी पत्थर से उगेगा धान
तुम अल्लाह के बंदे प्यारे तुम ईश्वर की  संतान
गर्व से सीना चौड़ी कर बोलो हम मेहनतकश इंसान
मेहनत में वो जादू है मित्रों जिसका नहीं  ढ़लान
बंजर में भी फूल हैं खिलते रेत बन जाता नखलिस्तान
मेहनत करे इंसान अगर तो जीना होता  आसान
माँ - पिता के क्लेश हैं मिटते  बनता देश  महान
तन से पसीना जब चूता है और बढ़ जाती है थकान
रात को मिठी निंद है आती तुम सोते  चादर  तान
परिश्रम तुममें बल है भरता तन पर  चढ़ाता  सान
तुम पैनी छुरी बन दे जाते आत्मनिर्भरता का ज्ञान
जिसने मुफ्त की रोटी तोड़ी और समझा इसमें शान
पछता कर उतारना ही होगा दूसरों  का दिया परिधान
करो परिश्रम खेतों में उसको बनाओ फूलों का उद्यान
बंजर से रोटी पैदा कर बन जाओ मानवता का वरदान
करो तरक्क़ी आगे बढ़ तुम फैलाओ उद्योग और विज्ञान
कहीं किसी से कम न रहे हम सबसे आगे  हो हिन्दुस्तान
घर, आँगन और  गली स्वच्छ हो मोहल्ला और मैदान
चलो सब मिल  आगे बढ़ायें स्वच्छता का  अभियान
मेहनत का है रंग चटकीला बिल्कुल रक्त  समान
देश की रक्षा खातिर हम दे दें अपना  आत्मबलिदान
परिश्रम का विकल्प न दूजा न इसके कुछ भी समान
मेहनत की रोटी खानेवालों तुम हो भारतमाता की शान ।

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