कुछ लोग सदा धारा की विपरीत दिशा में ही तैरना पसंद करते हैं क्योंकि वे सदैव अपनी अंतरात्मा की सुनते हैं दुनियाँ की नहीं। जब पूरा देश राममय हो रहा मेरे मन में विचारों की कुछ ऐसी श्रृंखला बन रही.......




मानव की मूढ़ता

हे मानव तू कपट का पुतला
धन्य  है  तेरी  धूर्तता
हर प्राण में व्याप रहा जो
उसको  भी  तू छलता।

जिसका आदि अंत नहीं है
जो अपरिमित जो असीम है
गर्भगृह तक उसे सीमित कर
मंदिर  निर्माता कहलाता?

इस ब्रह्मांड को रचने वाला
सब के भाग्य को लिखने वाला
उस अद्वितीय परम सत्ता को
कितना  निरीह  समझता!

जो अदृश्य है सदा अगोचर
उसकी  प्रतिमा  बनाता
राम नाम की माला जप कर
अपना  लाभ  उठाता

जो स्रष्टा है अणु-अणु का
जो सबका भाग्य विधाता
कैसे समाएगा मंदिर में
काश  समझ  तू पाता!


------- मुकुल अमलास -----







(चित्र गूगल से साभार)

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