जीवन का खेल कितना अनोखा है कभी-कभी यह मुझे अचंभित कर देता है, जब कुछ ऐसा घटता है जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी मेरी यह कविता इसी भाव दशा में लिखी गई है .....


क्या सखी तुमने भी देखा है ?



कोमल, मृदुल और सुवासित
बेहद रंगीन,  बेहद सुंदर 
जीवन के मधुमास काल में 
बिना खिले ही किसी पुष्प को 
धीरे-धीरे झरते देखा है 
क्या सखी तुमने भी देखा है ?

आँखों-आँखों में ही  सराहा 
मन ही मन में किसी को चाहा 
अन बोले उस अप्रकट प्रेम को 
जीवन के चक्रव्यूह में फँस कर 
धीरे-धीरे मरते देखा है 
क्या सखी तुमने भी देखा है ?

प्रेम विभोर किसी प्रेयसी के 
मन आँगन में उगे हरसिंगार से 
किसी अँधेरी आधी रात को 
सफेद-केसरिया भाव सुमन 
हौले-हौले झरते देखा है 
क्या सखी तुमने भी देखा है ?

दग्ध हृदय है व्याकुल आहें 
राह तकती थकी निगाहें 
प्रियतम से बिछड़ी विरहन को 
सावन की रिमझिम रातों में 
तिल-तिल कर जलते देखा है 
क्या सखी तुमने भी देखा है ?

सुख समृद्धि के चरम पे पहुँचे
रीतेपन का एहसास लिए 
रिश्तों की भीड़ में तन्हा 
किसी बावले भावुक इंसा को 
बिलख-बिलख रोते देखा है 
क्या सखी तुमने भी देखा है ?

जीवन की आपाधापी से जर्जर, 
थके, शिथिल हो चुके अंग में 
किसी भूले मित्र की पाती पाकर 
संवेगों के प्रगाढ़ उद्वेग को 
रोम-रोम में बहते देखा है 
क्या सखी तुमने भी देखा है ?

जीवन का है खेल निराला
विधना के इस रंगमंच पर 
हर इंसा को बेसुध होकर 
अपने-अपने भवितव्य के आगे 
नतमस्त नचते देखा है 
क्या सखी तुमने भी देखा है ?

-------मुकुल अमलास -------

(तस्वीर गूगल से साभार)










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