रुका हुआ समय




रुका हुआ समय 


भीड़ भरी सड़क पर चलते-चलते
ऐसा लगा जैसे समय रूपी नदी में
सब बहे जा रहे
रफ़्तार से - आगे की ओर
सिर्फ मैं ही एक चट्टान की भाँति
खड़ी हूँ सारे झंझावातों को झेलते हुए
नदी के बीचों बीच निश्छल, निर्जीव
समय की तेज धार मुझ पर वार कर रही
अपने तेज नाखूनों से
मैं खुरचती जा रही हूँ थोड़ी-थोड़ी
पर कुछ है जो थम सा गया है मेरे अंदर
वह इस बहाव का हिस्सा नहीं
मेरे लिए तो समय वहीं रुक गया था
जहाँ तुम मुझे छोड़ कर गए थे
कहना चाहती हूँ समय की इस धार से
हो सके तो एक बार मोड़ ले
रुख अपना
वहीं जहाँ 
एक दिल है जो धड़कना भूल गया है
एक तितली है जो पंख फैलाये
उड़ने को आसमान में टंगी पड़ी है
एक फूल है जो अधखिला रह गया है
एक गीत है जो गाई न जा सकी
एक मीठा बोल है जो बोला न जा सका
अभी तो एक खत को पते तक पहुँचाना बाकी है
अभी तो एक दोस्ती का बढ़ा हुआ हाथ थामना बाकी है
अभी तो मेरी झुल्फों को उसके कन्धों पर बिखरना बाकी है
अभी तो मुझे सावन बन उसपर बरसाना बाकी है
वक़्त की धारा अगर रुक सको तो रुक जाओ
एक पल केलिए
सिर्फ मेरे लिए
मैं एक बार जी भर कर साँस ले लूँ
उसे अपने बाँहों में भर कर
अपनी मजबूरी बता दूँ 
मन पे पड़ा बोझ उतार कर हलकी हो लूँ 
फिर तेरे साथ खुद ही चल परूँगी 
सदा-सदा के लिए | 

                                                                   --- मुकुल कुमारी अमलास








( चित्र गूगल से साभार ) 

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