दाना माँझी की घटना ने मुझे भी झकझोड़ कर रख दिया, मन में जहाँ एक तरफ गहरी पीड़ा थी तो दूसरी तरफ व्यवस्था के प्रति आक्रोश और अपनी असहाय स्थिति के प्रति क्षुब्धता का भाव तथा पता नहीं और क्या-क्या जो इस रचना के जन्म का कारण बनीं..........


कालाहाँड़ी  


कल रात मैं ने एक अजीब स्वप्न देखा
मैं एक काली हाँड़ीनुमा द्वार पर खड़ी हूँ
गोल पर छोटा सा है वह द्वार
अभी-अभी एक व्यक्ति अपने कंधे पर कुछ लादे भीतर गया है
उसके साथ एक बच्ची भी है
मैं उसके साथ भीतर जाना चाहती हूँ
पर वहाँ खड़ा संतरी
मुझे अंदर जाने से रोक देता है
मुझसे पूछता है ढ़ेरों सवाल-
कौन हो तुम ?
कोई खोजी पत्रकार ?
शिक्षकों का यहाँ क्या काम !
यहाँ क्यों आये हो ?
उस व्यक्ति से क्यों मिलना चाहते हो ?
कोई नाता-रिश्ता ?
हितैषी ! 
यह कौन सा रिस्ता होता है ?
बताती हूँ उसे कि‌‌‌‌- 
वास्तविक आजादी का अर्थ ढूँढने आई हूँ
उन प्रश्नों के उत्तर ढूँढने आई हूँ
जो मेरे छात्र अक्सर मुझसे पूछते हैं-  ‌‌
'जब भारत दुनियाँ के दस सबसे धनी देशों में शामिल है
तो भी दाना माँझी जैसे लोग देश में क्योंं हैं'?  
बच्चे मुझे आँकड़े दिखाते हैं
'भारत व्यक्तिगत संपति के मामले में दुनियां में सातवें स्थान पर है
मैडम आप यह क्यों कहती हैं कि भारत गरीब है'
मेरे छात्र समृद्ध परिवारों से आते हैं
उन्हें नहीं पता गरीबी क्या होती है
वो भ्रम पाल बैठे हैं कि
हमारा देश आज एक धनी देश है
मैं उनके इस सुखद भ्रम को तोड़ना तो नहीं चाहती
पर शिक्षक होने के नाते
उन्हें सत्य दिखाना चाहती हूँ
वर्षों से उन्हें कालाहाँड़ी के बारे में बताती आ रही हूँ
यही वह जगह है जहाँ
आज भी लोग भूख से मर जाते हैं
उन्हें दाना माँझी से मिलाना चाहती हूँ
सत्य से रूबरू  करवाना चाहती हूँ
मैं उन्हें खाद्य-सुरक्षा के बारे में पढ़ाती हूँ
उन्हें यह भी बताती हूँ कि
भारत इस मामले में आत्मनिर्भर है
और यह भी कि कितने टन अनाज प्रतिवर्ष
भंडारों में सड़ जाते हैं 
बच्चों को मेरी बात समझ में नहीं आती- 
कुछ तो गड़बड़ है फिर लोग मरते क्यों हैं भूख से ?
उनके इन मासूम सवालों की तलाश ही मुझे यहाँ ले आई है 
संतरी को संदेह है कि मुझे मेरे सवालों के जबाब यहाँ मिल पायेंगे
बहुत अनिच्छा से वह मुझे अंदर जाने की इजाजत देता है
भीतर का दृश्य बहुत सुंदर है
कोई भव्य आयोजन चल रहा है
चारों ओर शोर सुनाई दे रहा है -
आजादी सत्तर साल के नारों से आसमान गूँज रहा है
राष्ट्रवाद, हिंदुत्व और पाकिस्तान पर 
नेताओं का भाषण चल रहा है
सरकार बड़े पूँजीपतियों के साथ मिलकर
नई-नई परियोजनाओं का ऐलान कर रही है
चारोंं ओर खुशहाली ही खुशहाली है
मुझे लगता है  मैं किसी गलत जगह पर आ गई हूँ
यह तो वह कालाहाँड़ी नहीं दिखता
जैसा  सुनती आई हूँ
दाना माँझी का पता ढूँढ़ते हुए आगे बढ़ती हूँ
एक बदबू से भरे हुए बस्ती में प्रवेश करती हूँ
यहाँ एक स्वच्छता अभियान का बड़ा सा पोस्टर लगा है
कुछ अर्द्ध-नग्न बच्चे सड़कों पर टट्टी कर रहे हैं
उनकी माँऐं लम्बी कतारों में नल पर पानी के लिए खड़ी हैं
दाना माँझी की झोपड़ी में जाती हूँ
कोने में एक मिट्टी का चूल्हा पड़ा है
दो टूटे-फूटे हाँड़ी पड़े हैं बगल में
एक रस्सी पर कुछ गुदड़ी और फटे-अधफटे कपड़े टंगे हैं
एक कोने में टीन का एक टूटा-फूटा बक्सा पड़ा है
बस यही व्यक्तिगत संपति है दाना माँझी की 
दाना माँझी झोपड़ी में नहीं मिला मुझे
उसकी पत्नी की लाश अभी भी पड़ी है
पता चला वह लकडियों को बटोरने के लिए गया है
पत्नी के दाह संस्कार के लिए
पास के आरक्षित वन से वह लकड़ी नहीं ले सकता
क्योंकि यह अवैध है
शायद शाम तक वह फुरसत पा ही ले
इन कामों से
फिर मैं उससे पूछूँगी कि ‌‌-
तुम कौन सी शराब पीते हो
जिसका आरोप है तुम पर 
जो तुम्हें देता है इतना मनोबल और संवेदना 
जिससे तुम पत्नी की लाश को कंधे पर उठा
छह घंटे तक 
दस मील तक
चल पाते हो
हमारे यहाँ तो लाशें चार कंधों पर भी भारी लगती हैं
कुछ सवाल मुझे उसकी लडकी से भी पूछनी है
पर अभी वह बहुत दुःखी है
फिर कभी
मैं आगे बढ़ती हूँ
एक चौराहे पर गाँधी की प्रतिमा दिखती है
एक चिड़िया उनके कंधे पर बैठ बीट कर रही है
गाँधीजी का चश्मा लटक आया है उनके चेहरे पर
पता चला किसी ने आज उन्हें गाली देते हुए पत्थर चला दी 
चश्मे का धागे से बंधा सिरा कान में अटका पड़ा है
दूसरा सिरा चेहरे पर लटक आया है
एक प्रश्न गाँधी से भी पूछना चाहती हूँ -
तुमने तो देश के अंतिम जन के आँसू पोंछने को
सच्ची आजादी कहा था
पर दाना माँझी की बेटी आज भी रो रही है जार-जार
उसके आँसू कब पोंंछे जायेंगे 
और कौन पोछेगा उसे ?
मुझे कोई जबाब नहीं मिलता 
बेचैनी में मेरी नींद खुल जाती है 
और मेरे प्रश्न रह जाते हैं यूँ ही अनुत्तरित
अब मैं अपने छात्रों को क्या उत्तर दूँ?  



                                            -- मुकुल अमलास 





 (चित्र गूगल से साभार) 























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