ग़ज़ल को कुछ लोग उम्दा साहित्य नहीं मानते पर उसमें जो रूमानियत है उसका क्या कोई जबाब है ? कौन है जो जीवन में एक बार इस रूमानियत के दौर से नहीं गुजरा है ! आज इसी रूमानियत को समर्पित कुछ गजलें..........
गज़ल
याद जो तेरी आई तन मन महक गया
दिल के बाग़ में जैसे गुलाब खिल गया ।
मन का आसमां सज कर सिंदूरी हो गया
चाहत का रंग जबसे जीवन में बिखर गया ।
कह दो हवाओं को तुझे छूकर न पास आये
आफत में तुम पड़ोगे अगर मैं बहक गया ।
जीना मेरा अब हो गया दुश्वार तेरे बिना
जब से तुझे देखा और आँखें मिला गया ।
एक मेहनती आवाम था मैं कभी मगर
तेरा इश्क मुझको निकम्मा बना गया ।
आओ आकर देख लो जो दिल का हाल है
आज तेरी फ़ुर्कत कैसे मुझको रुला गया ।
मुकुल कुमारी अमलास
( चित्र गूगल से साभार )
मुकुल कुमारी अमलास
( चित्र गूगल से साभार )
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