हम सब को कभी न कभी या तो परीक्षार्थी के रुप में या फिर एक निरीक्षक के रुप में परीक्षा भवन का अनुभव अवश्य है , मैं ने उसी परिदृश्य को उकेरने की कोशिश की है इस कविता में
परीक्षा भवन
एक शांति स्थल,
एक मौन वातावरण,
कोई झुक कर लिखता तो सर नहीं उठाता,
कोई छत को निहारता बार-बार सर को खुजाता,
कोई नाखून को दाँतों से कुतरता,
कोई लिख-लिख कर थक गये हाथों को झकझोरता,
कोई बार-बार प्रश्नपत्र को पढ़ता,
कोई लिखता फिर बुद्बुदाता,
कोई निरीक्षक को बार बार देखता,
कोई खिड़की के बाहर खुले आसमान को निहारता |
अजीब सी यह दुनियाँ है
जहाँ तीन घंटे के लिए समय किसी के लिए ठहर सा
गया है
तो किसी के लिए पंख लगा कर उड़ा जा रहा है,
कोई होठों को काटता,
कोई कनखी से दोस्तों को देखता,
कोई लड़की बार बार लटों को संवारती,
कोई लड़का बेवजह बैठा मुस्कुराता,
कोई गालों पर हाथ रख सोच में डूबा,
कोई मेज पर ही सो रहा उत्तरपुस्तिका समेटा,
कोई बार बार घड़ी को रहा देख,
कोई बहुत जल्दीबाजी में,
कोई नितांत स्थिर और शांत,
किसी को प्रश्न छूटने का डर,
तो कोई कक्षा से बाहर जाने को आतुर,
शिक्षकों के लिए बड़ा ही परिचित परिदृश्य,
जल्दी समय न कटने का चेहरे पर उकताहट और खीज,
साल भर की मेहनत अब तो रंग लायेगी,
किसी के घर आफत तो किसी के घर बधाई बाजेगी |
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