दीपावली में जिनके अपने उनके पास नहीं पहुँच पाये उनकी यादों को समर्पित मेरी यह कविता......
बहुत मस्ती की सबने इस बार दिवाली में
खुब दीये जलाये फोड़े बम और पटाखे हैं |
धुँआ तो फैल गया अब बताओ करें क्या
साँस लगी फुलने और दम घुटने लगे हैं |
साँस लगी फुलने और दम घुटने लगे हैं |
रंगोली हमने सजाई आतिशबाजियाँ भी की
हुआ क्या जो मावा-मिठाईयाँ थोड़े बिषैले हैं ।
दीपमालायें सजी हैं , रंगीन फानूस और तोरण हैं
हमें करना क्या गर दूसरों के घर में छाये अंधेरे हैं ।
हमें करना क्या गर दूसरों के घर में छाये अंधेरे हैं ।
गाँव में सब त्योहार के अवसर पर कर रहे इंतजार
हम जायें क्यों , यहाँ मस्ती है, मजा है, ठिठोले हैं |
हम जायें क्यों , यहाँ मस्ती है, मजा है, ठिठोले हैं |
दूसरों को ठग कर कुछ ने घी के दीपक जलाये हैं
कुछ बेईमानी कर नहीं सकते, कुछ के जमीर सोये हैं |
एक बेटी को छोड़ कितने आये गये इस दिवाली में
माँ की आँखें ढुँढती हैं उसे और किनारे गीले हैं |
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