एक छोटे से शिशु को गोद लिजीए उसे कलेजे से लगाईए और कुछ देर के लिए आँखें बंद कर लिजीए सच कहती हूँ पारलौकिक अनुभव होगा । थोड़ी देर के लिए आप खुद को भूल जायेंगे और महसूस यूँ होगा जैसे आत्मा की शुद्धी हो गई ।आज इसी शिशु को समर्पित है यह कविता ........


शिशु



एक शिशु में  
भगवत्ता संपूर्णता से उद्घाटित होता है 
निश्छल, निर्बोध, सरल, सहज शिशु 
प्रकृति का अनुपम  वरदान 
उसके चेहरे का स्मित हास
हृदय में कैसी हूक जगाता है
बार बार चेहरे का
भाव बदलना
कभी पलकों का हिलना 
कभी भौंहों का विन्यास बदलना 
कभी रोना कभी हंसना
कैसा निश्छल रुप
मन भर भर आता है
बाहें कलेजे से लगाने को
बेकल हो उठती हैं 
हृदय ममता की वर्षा से
भींग जाता है 
कितनी प्यारी छवि
ईश्वर साक्षात् शरीर रुप में
पहचान और अपहचान से अनभिज्ञ शिशु 
सबको समान रुप से अपनाता है
मनुष्य अपने शुद्ध रुप में 
शिशु रुप में ही तो रहता है
शायद इसीलिए हर बच्चा सुंदर होता है ।


                                               -मुकुल कुमारी अमलास 

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