मिथिलावासी होने के नाते सीता ने जो दुःख सहा कहीं न कहीं मुझे भी सालता है यह दुःख और राम से कुछ प्रश्न करने की बार बार इच्छा जगती है | आज जब दशहरा के दिन जगह जगह रावण को जलाने की तैयारी चल रही है, रोक न सकी खुद को उन प्रश्नों को पूछने से .....


कैसे कहूँ तुम्हें मर्यादा पुरुषोत्तम



सीता धरती में समाई अगर
सीता को धरती में समाने के सिवाए
क्या था कोई उपाय !
जिस राम के ख़ातिर
वन वन भटकी
दिया साथ जिसका हर घड़ी हर पहर
उसी राम ने छोड़ा साथ
दिया वन गमन की तड़प
हे राम ! 
क्या हृदय पर हाथ रख कर
कह सकोगे कि
सीता के हृदय में तुम्हारे सिवाय
कोई और था?
या फिर यह कि
रावण ने अगर सीता का किया हरण
तो इसमें सीता का क्या दोष था?
अगर नहीं था दोष 
तो सीता की अग्नि परीक्षा क्यों ?
सीता को किस पाप का दंड ?
राम, दुनियाँ कहती होगी
तुम्हें मर्यादा पुरुषोत्तम
मैं न कह सकूँगी
तुम मर्यादा पुरुषोत्तम तब होते जब 
सीता को हृदय से स्वीकारा होता
यह जानते हुये भी कि
जिस पापी रावण ने
सीता को छुआ
वो सीता का शरीर था
उसकी आत्मा तो निर्मल है
और उसमें सिर्फ राम समाया है
सीता ने तो अपने आत्मबल से
कर ली थी रावण से अपनी मर्यादा की रक्षा
पर तुमसे न कर पाई इसकी रक्षा
एक स्त्री की मर्यादा को रावण ने नहीं किया भंग
एक पति ने किया भंग
एक निर्दोष गर्भवती को गृहत्याग की आज्ञा दे कर
तुम्हारे लिये राजधर्म होगा बड़ा
होगे तुम एक बड़े राजा
पर नहीं चाहिये हम स्त्रियों को
ऐसा रामराज्य
जिसमें सीता की मर्यादा सुरक्षित नहीं
जिस राज्य में स्त्री सिर्फ एक शरीर है
उसकी आत्मा की शुचिता कुछ भी नहीं
राम सच कहना
क्या सचमुच की थी तुमने  
मर्यादा का पालन?

                            ‌-  मुकुल अमलास 



(चित्र गूगल से साभार) 




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