मेरे सपनों का घर
मेरे सपनों का घर
हाँ सपनों सा ही सुंदर
सपने भी वास्तविकता में तब्दील हों
ऐसा क्षण जीवन में कम ही आता है
कितनी उत्कंठा
कितना परिश्रम
एक यज्ञ ठानने सा संकल्प
फिर बिना विध्न के उसे
पूरा कर लेने की तड़प
क्या कोई यज्ञ बिना बाधा के पूरा हुआ है
कैसे – कैसे रोड़े
कैसी – कैसी समस्याएं
हाँ, इस
यज्ञ में हवन हो गये
जीवन के कई साल
और बनाना पड़ा खुद को ही
समिधा की सुखी लकड़ी तैयार
दिन भर की भागम-भाग
और रातों का हिसाब-किताब
बेहिसाब साधन-सामग्री को इकट्ठा करने का संताप
भूख प्यास और ताप
सीसे में दिखी वो पहली झुर्री
जो आँखों के किनारे पड़ी थी
लेकिन बिना बलि के यज्ञ पूर्ण कैसे हो
यज्ञ सम्पन्न हुआ
मनचाहा मिला वर
सपनों से भी बढ़ कर|
मैं रहूँ न रहूँ अब
लेकिन रहेगा मेरा घर
मेरा परिश्रम
अपने मूर्त्त रुप में
मुझसे भी लंबी आयु लेकर
है यह बच्चों को अपनी ओर से
दिया गया उपहार
उनका पनाहगार
अब है संतुष्टि
सर पे अपना घर होने का एहसास
इस धरती पर है सुरक्षित
अब अपना भी एक ठौर
हाँ सपना सच हुआ
और भोगा मैंने भी
सृजन का सुख और शौर्य |
- मुकुल कुमारी अमलास
(चित्र गूगल से साभार)
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें