चाँद पे लिखना कवियों का पसंदीदा शग़ल है मैं भी इस सम्मोहन से मुक्त कैसे हो सकती हूँ | चलिये आज कुछ चाँद के बहाने ही सही............

आवारा चाँद



कल रात चाँद
मेरी खिड़की से
एक आवारा लड़के सा
झांक रहा था
उसके नज़रों की तपिश
मेरे अंग-अंग को जैसे भेद रही थी
कैसा बेसब्रा हो
घुस आया था वह
अंधेरे कमरे में भी
कैसे समझाती उसे मैं
कि इतनी आवारगी अच्छी नहीं 
मैंने परदा सरका दिया
तो वह फुसफुसा उठा 
कुछ गुनगुना उठा
उसका  झीना झीना रूप
मुझे प्यारा लगा
परदे की ओट में
फिर हम घंटों बातें करते रहे
मेरी आंखों में निंद नहीं थी
और उसे तो रतजगे की आदत थी
रात गहराती गई
हमारी बातें खत्म होने का
नाम ही नहीं ले रही थीं
उसकी बातों में मिठास थी
गहरी अंधेरी रातों के
एक से बढ़ कर एक क़िस्से 
उसकी ज़ुबान पर थे
कि कैसे रात को
फूल और पौधे आपस में बतियाते हैं
कैसे तारे जासूसी करते हैं
कैसे परियाँ धरती पर उतरती हैं 
कैसे हवायें अपना रेशमी आँचल लहराती हैं  
कैसे मानव रातों को
बहुरूपीये सा अपना खोल उतारते हैं
रात की तिलिस्मी दुनियाँ का असर
धीरे धीरे मुझ पे तारी था
और सच कहती हूँ
कुछ पल को चाँद
मेरे संग धरती पर उतर आया था । 


                     --  मुकुल कुमरी अमलास 



( चित्र गूगल + से साभार )


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