कुछ अनुभव बड़े ही पवित्र और ख़ास होते हैं जिन्हें शब्दों में उतारना तो लगभग नामुमकिन ही होता है फिरभी धृष्टता कर रही हूँ ..........
ब्रह्मांडीय रति
हम और तुम जब मिलते हैं
और होते हैं एक
यह सिर्फ दो शरीरों का मिलना नहीं होता
मेरे पोर पोर में रस बरसता है
और तुम्हारे नस नस में बिजली कौंधती है
जब हम आलिंगनबद्ध होते हैं
जब तुम मुझमें समाये होते हो
हम होते हैं एकाकार
और यह एहसास दिलाता है मुझे
जैसे मिलन है यह शिव और शक्ति का
मेरे चारों ओर सूर्य, चंद्र, ग्रह,नक्षत्र बिखड़े पड़े हैं
हम तुम किसी आकाश गंगा में लय हैं
संपूर्ण ब्रह्मांड का आनंद
हमारे चारों ओर सागर सा हिलोरें ले रहा होता है
संसार का सबसे सुंदरतम क्षण है यह
शरीर का अणु अणु होता है रोमांचित
सम्पूर्ण सृष्टि है कंपायमान
चारों और है असीम प्रकाश का विस्तार
हम नहीं चढ़ रहे होते कोई उत्तुंग चढ़ाई
परमानंद के ज्वार में हम बहे रहे होते हैं किसी घाटी में
क्षण थिर हो जाता है
विचार रुक जाते हैं
हमारा स्व विलीन हो जाता है
होते हैं हम हिस्सा सिर्फ उस विश्वजनीनता के
जिसमें है सब समाया
तेरा संसर्ग कराता है मुझे
एकात्मता का एहसास
उस ब्रह्मांडीय रति से
जिसमें लीन है समस्त समष्टि
जल थल नभ ।
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