मेरा सावन सूख गया है, निश्चय ही सावन की रसधार उनके लिये है जिनका मन मीत उनके साथ है, एक विरहिणी के लिये तो सावन भी सूखा ही होता है .............
मेरा सावन सूख गया है
जब से प्रिय तुम दूर हुये
मुझ विरहण को छोड़ गये
मन की धरती जलती है
अब बस आँख बरसती है
जीवन का रस सूख गया है
मेरा सावन रूठ गया है ।
किसके संग मनुहार करूं मैं
किसके लिये श्रृंगार करूँ मैं
रात अंधेरी अमावस की आई
चारों ओर घनी अमा है छाई
चांदनिया बादल ओट छुपा है
चाँद मेरा मुझसे रूठ गया है ।
जीवन में रस राग नहीं है
बस निशा है उषा नहीं है
जिस तटनी के एक ही तट हो
जिस सागर का कोई न तल हो
मेरी वेदना का ठौर नहीं है
प्रियतम मेरा रूठ गया है ।
जिस फूल पर भ्रमर न डोले
जिस मंदिर में हों नहीं भोले
जिस अमा की भोर नहीं हो
जिस जंगल में मोर नहीं हो
जीवन से रंग छूट गया है
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