मौसम के अनुकूल मेरा यह प्रयास |

                                   गर्मी का मौसम

आसमान से लपटें उठती, आग उगलती धरती है

  रोम-रोम है झुलसा जाता, बहुत सताती गर्मी  है  
               
चिलचिल करती धूप है जलती,  नहीं  दूर तक पानी है

पशु-पखेरु बेहाल हो रहे, इस मौसम की  कैसी बेरहमी है

सूखे  घाट, नदी-नाले हैं सूखे, कहीं  नहीं  हरियाली  है

गले की प्यास बुझ नहीं पाती, गजब सी त्रास तूफानी है

टप-टप पसीना चूता दिनभर, एसी-कूलर की मारा-मारी है

हवा में तपन है,  वदन है  ठंड़ा, कितनी बड़ी हैरानी  है

सड़क है सूनी, गलियाँ सूनी, फैली चारों ओर वीरानी  है

घर के अंदर बंद हो रहे सब, कहीं  ना  आवाजाही   है


नहीं-नहीं यह शहर नहीं है, यह दृश्य तो रेगिस्तानी है |

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