मिलन
मिलन
अकेलापन
एक संताप
एक तकलीफ
एक टीस
जो चुभती है
एक ऐसी सहेली
जो साथ नहीं छोड़ती |
थक गई हूँ इसे ढोते-ढोते
अब सहा नहीं जाता
काश !
यह अकेलापन इतना
घनीभूत हो जाए
कि जाऊँ मैं पिघल
मेरा रेशा-रेशा भाप बन कर
विलिन हो जाए इस ब्रह्मांड में
मेरा जर्रा-जर्रा बिखड़ जाए ऐसे
कि मैं मिल जाऊँ इस संपूर्ण सृष्टि में
मेरा ‘मैं’ तिरोहित हो जाए सदा
के लिए
और मेरा अस्तित्व ही न बचे
क्या कभी होगा यह मिलन ?
कैसा होगा यह मिलन ?
हाँ यह मिलन ही अकेलेपन से मुक्ति है
उस अरुप ब्रह्म से मिलन
शाश्वत का दर्शन |
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