निर्भया और दामिनी एक बार फिर से चर्चा में हैं, अतः दामिनी को मेरे द्वारा दी गई श्रधांजलि के रुप में लिखी गई यह कविता प्रस्तुत है----
दामिनी की फरियाद
रोती सिसकती और तड़पती
जब मैं बेइंतहा दर्द से कराह रही थी
तब भी जिनका दिल न पिघला
वे इंसान हैं या कोइ हैवान।
रोती सिसकती और तड़पती
जब मैं बेइंतहा दर्द से कराह रही थी
तब भी जिनका दिल न पिघला
वे इंसान हैं या कोइ हैवान।
धुनती हुइ
रुइ की भाँति मेरे शरीर को नोचते रहे वे लोग
लडकियाँ हैं उनके लिए एक खिलौना
जी भर खेलो फिर फेंक दो सडकों पर।
ऎसी घृणित मानसिकता
नहीं देती हक तुम्हें किसी का बेटा, भाई और पति कहलाने का।
लडकियाँ हैं उनके लिए एक खिलौना
जी भर खेलो फिर फेंक दो सडकों पर।
ऎसी घृणित मानसिकता
नहीं देती हक तुम्हें किसी का बेटा, भाई और पति कहलाने का।
तुमने स्त्री अस्मिता की उडाई है खिल्ली
शर्मिंदा है वह माँ जिसने तुम्हें जन्म दिया,
शर्मिंदा है वह माँ जिसने तुम्हें जन्म दिया,
वह बहन जिसने तुम्हें राखी बाँधी,
वह पत्नी जिसने हर हाल में साथ निभाने की कसम खाई।
तुमने हर मानवीय भाव और संवेदना का उड़ाया है मजाक
अपनी करनी का अब तुम्हें देना होगा हिसाब।
अपनी करनी का अब तुम्हें देना होगा हिसाब।
जितनी चोटें तुमने मेरी जिस्म पर लगाई
क्यों न उतनी ही चोटों से मैं भी दूँ तुम्हें जबाब,
तुम्हें समझना होगा
क्या होता है बेआबरु होना।
क्यों न तुम्हें भीड़ भड़े चौराहे पर नंगा किया जाय,
क्यों न तुम्हारे बालों को पकड़ कर
दिल्ली की सडकों पर घसीटा जाए,
क्यों न तुम्हें हर उस जगह चोटिल किया जाए जहाँ तुमने मुझे किया,
क्यों न तुम्हारे एक-एक अंग को जलाया जाय जीते जी,
क्यों न सब के सामने तुम्हारे लिंग को काट कर कुत्तों को खिलाया जाय ।
क्यों न उतनी ही चोटों से मैं भी दूँ तुम्हें जबाब,
तुम्हें समझना होगा
क्या होता है बेआबरु होना।
क्यों न तुम्हें भीड़ भड़े चौराहे पर नंगा किया जाय,
क्यों न तुम्हारे बालों को पकड़ कर
दिल्ली की सडकों पर घसीटा जाए,
क्यों न तुम्हें हर उस जगह चोटिल किया जाए जहाँ तुमने मुझे किया,
क्यों न तुम्हारे एक-एक अंग को जलाया जाय जीते जी,
क्यों न सब के सामने तुम्हारे लिंग को काट कर कुत्तों को खिलाया जाय ।
तुम हो दरिंदे हैवान
तुम्हारे लिए इतनी सजा भी होगी कम
लेकिन मैं चाहती हूँ कि
इंडिया गेट पर तुम्हें दूँ फाँसी अपने हाथों से
ताकि उन असंयमित इंसानों को
मिल सके सीख-
कि क्या होती है गत
किसी लड़की की अस्मत से खेलने का।
तुम्हारे लिए इतनी सजा भी होगी कम
लेकिन मैं चाहती हूँ कि
इंडिया गेट पर तुम्हें दूँ फाँसी अपने हाथों से
ताकि उन असंयमित इंसानों को
मिल सके सीख-
कि क्या होती है गत
किसी लड़की की अस्मत से खेलने का।
रुह काँप न जाए जब तक
तड़पाउँ मैं तुम्हें,
क्यों नहीं देता है
देश का कानून यह हक
हर उस लड़की को
जिसकी आबरु लुटी जाती है।
कानून को बदल डालो
अब बलात्कार की सजा तय करने दो
हर उस लड़की को
जिसकी इज्जत लुटी गई है,
समय की माँग है यह
हर लड़की का सम्मान है यह।
तड़पाउँ मैं तुम्हें,
क्यों नहीं देता है
देश का कानून यह हक
हर उस लड़की को
जिसकी आबरु लुटी जाती है।
कानून को बदल डालो
अब बलात्कार की सजा तय करने दो
हर उस लड़की को
जिसकी इज्जत लुटी गई है,
समय की माँग है यह
हर लड़की का सम्मान है यह।
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