जिंदगी सदा मेरे लिए एक अबूझ पहेली रही है,इस पहेली को एक कविता के रुप में बूझने की कोशिश.

अबूझ पहेली
कैसी अबूझ पहेली है
यह जिंदगी
कितना मुश्किल, समझ पाना इसे 
कभी लगता है
सबकुछ है अपने हाथ में,
जैसे चाहें
समय को मोड़ लें,
अपने पुरुषार्थ पर होता है गर्व,
अपनी कर्मठता पर विश्वास,
लेकिन दूसरे ही पल
जैसे सब कुछ
हाथ से फिसल जाता है |
कुछ भी तो नहीं
अपने हाथ में
अपने साथ में
हमारे चाहे कुछ नहीं बदलता
सब दैव अधिन है,
सुख-दुख की आँख-मिचौली
खत्म ही नहीं होती |
गया वक्त
पारे सा ढलक गया
आने वाला  वक्त भी क्या
सूखे पत्तों सा बिखड़ जायेगा ?
क्या करुँ कि
कुछ बंध जाये ऐसे
आँचल में
जो रहे हमेशा साथ
और दिलाये स्वयं की
सम्पूर्णता का एहसास
क्या करेगा कोई

मेरी मदद यह बताने में |

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